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इस दुर्लभ खून ने म्यांमार में बचाई जान

बेंगलुरु। म्यांमार में दिल की सर्जरी के लिए खून तलाश रही एक 34 वर्षीय महिला ने सोचा भी नहीं होगा कि उसकी मदद मीलों दूर दूसरे देश से आएगी। बेंगलुरु के देवनगरे ब्लड बैंक ने दुर्लभ बॉम्बे ब्लड ग्रुप खून की दो यूनिट कूरियर के जरिए म्यांमार भेजीं। खून के लिए रिक्वेस्ट यंगून जनरल हॉस्पिटल से आई थी। ब्लड बैंक ने उनकी जरूरत पूरी भी कर दी और डोनर, मरीज या मरीज के रिश्तेदारों में से किसी को कहीं भी जाने की जरूरत नहीं पड़ी। बेंगलरु से चला खून यंगून हॉस्पिटल 2-3 दिन में पहुंच गया।
बेंगलुरु का संकल्प इंडिया फाउंडेशन बॉम्बे ब्लड ग्रुप की एक एक्सक्लूसिव रजिस्ट्री चलाता है। फाउंडेशन से म्यांमार के एक डॉक्टर ने संपर्क किया था। यह फाउंडेशन दुर्लभ ब्लड ग्रुप की यूनिट्स का मैनेजमेंट करता है। फाउंडेशन के संयोजक रजत अग्रवाल ने कहा, ‘हमारी टीम बॉम्बे ब्लड ग्रुप के डोनर्स के बारे में जानकारी इकट्ठा करता है। साथ ही जब भी इसको लेकर देश-विदेश से रिक्वेस्ट आती हैं तो हम उसे पूरा करने की कोशिश करते हैं। म्यांमार में इस ब्लड ग्रुप का कोई डोनर अभी तक जानकारी में नहीं है, इसलिए यहीं से खून भेजने का ऑप्शन बचा था।’ देवनगरे स्थित एसएस इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ ऐंड रिसर्च इंस्टिट्यूट के ब्लड बैंक की इंचार्ज डॉक्टर कविता ने बताया, ‘इस ब्लड ग्रुप की यूनिट्स को हाल ही के एक ब्लड डोनेशन कैंप के दौरान कलेक्ट किया गया था। डोनर्स को खुद नहीं पता था कि उनका ब्लड ग्रुप इस कदर दुर्लभ है।’ बॉम्बे ब्लड ग्रुप एक प्रकार का ब्लड ग्रुप ही है, लेकिन यह कितना दुर्लभ है इसका अंदाजा इससे लगा लीजिए कि यह दुनियाभर के 0.0004 फीसदी लोगों में ही पाया जाता है। यह O पॉजिटिव कैटिगरी का ब्लड है। भारत में 10-17 हजार लोगों में से एक शख्स में यह खून पाया जाता है। इस ब्लड ग्रुप के लोगों में यही ब्लड चढ़ाया जा सकता है। अन्य ब्लड ग्रुप जैसे A, B, AB और O में H एंटीजन पाया जाता है, मगर यह बॉम्बे ब्लड ग्रुप में नहीं होता है। इसमें सिर्फ H एंटीबॉडी ही पाया जाता है। इस ब्लड ग्रुप का पता पहली बार साल 1952 में बॉम्बे (अब मुंबई) में चला था।

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