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आदिवासी भारत के और कैनेडा के -वेद प्रताप वैदिक

भारत में आदिवासियों को कितना महत्व दिया जाता है, इसे आप इसी तथ्य से समझ सकते हैं कि इस समय भारत की राष्ट्रपति एक आदिवासी, वह भी महिला द्रौपदी मुर्मू हैं और तीन राज्यपाल आज भी आदिवासी हैं। छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसूय्या उइके ने जो मूलत: मध्यप्रदेश की हैं, आदिवासियों के लिए कई नई पहल की हैं। भारत में कई आदिवासी मुख्यमंत्री और मंत्री हैं और पहले भी रहे हैं। संसद में भी भारत के लगभग ५० सदस्य आदिवासी ही होते हैं। कई विश्वविद्यालयों के उप-कुलपति और प्रोफेसर भी आदिवासी हैं।
भारत के कई डाक्टर और वकील भी आपको आदिवासी मिल जाएंगे। सरकारी नौकरियों और संसद में उन्हें आरक्षण की भी सुविधा है लेकिन आप जरा जानें कि अमेरिका और कैनेडा के आदिवासियों का क्या हाल हैं। मैं अपनी युवा अवस्था से इन देशों में पढ़ता और पढ़ाता रहा हूं। मुझे इनके कई आदिवासी इलाकों में जाने का मौका मिला है। यह संयोग है कि मेरे साथी छात्रों में कभी कोई अमेरिकी या कैनेडियन आदिवासी नहीं रहा है। वहां के आदिवासी आज भी जानवरों की जिंदगी जी रहे हैं।
उनसे माफी मांगने के लिए पोप फ्रांसिस, जो कि ८६ साल के हैं, कैनेडा गए। व्हीलचेयर में बैठे पोप वहां क्यों गए हैं? ईसाई पादरियों और गोरे प्रवासियों द्वारा वहां के आदिवासियों पर किए गए अत्याचारों के लिए माफी मांगने के लिए गए हैं। पिछले ८०-९० साल में आदिवासियों के लगभग डेढ़ लाख बच्चे लापता हो चुके हैं। इन बच्चों को उनके घर से जबरन उठाकर ईसाई स्कूल में भर्ती कर दिया जाता था।
उन पर हुए अत्याचारों की कहानी रौंगटे खड़े कर देती है। हजारों बच्चे भूख से तडप-तडप कर मर गए, हज़ारों के साथ बलात्कार हुए और हज़ारों की हत्या कर दी गई। उनके ईसाई स्कूल उनके गांवों से इतने दूर बनाए जाते थे कि उनके माँ-बाप उन तक नहीं पहुंच सकें। कैनेडा सरकार ने जांच आयोग बिठाकर जो तथ्य उजागर किए हैं, उनसे पोप मर्माहत हुए और कैनेडा जाकर उन आदिवासियों से माफी मांगने का संकल्प किया।
कैनेडा सरकार ने उनके पुनरोद्धार के लिए ४० बिलियन डॉलर देने की घोषणा की है। अमेरिका और कैनेडा के आदिवासियों को ‘रेड इंडियन’ और ‘इंडियन’ कहा जाता है लेकिन जऱा देखिए कि उन देशों और भारत के आदिवासियों में कितना फर्क है।

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