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आईओए की कमान : बदलनी तो चाहिए तस्वीर – मनोज चतुर्वेदी

भारतीय खेलों में पिछले कुछ सालों से एक अच्छा ट्रेंड देखने को मिल रहा है। यह ट्रेंड है खेल संगठनों का बॉस खिलाडिय़ों का बनना।
इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अपने समय की बेहतरीन धाविका पीटी ऊषा देश के सर्वोच्च खेल संगठन भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष पद पर पहुंची हैं। पीटी ऊषा को निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया है। पाय्योली एक्सप्रेस के नाम से मशहूर रहीं पीटी ऊषा ने १९८० के दशक में एशियाई खेलों सहित तमाम अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदकों का अंबार जुटाया। पर उनका १९८४ के लास एंजिल्स ओलंपिक की ४०० मीटर बाधा दौड़ में सेकंड के सौवें हिस्से से पिछड़कर कांस्य पदक से हाथ धोने को हमेशा याद किया जाता है।
पीटी ऊषा से पहले सिर्फ एक और खिलाड़ी महाराजा यदुविंद्र सिंह आईओए अध्यक्ष बने थे। उन्होंने १९३४ में इकलौता क्रिकेट टेस्ट खेला था और वह १९३८ में अध्यक्ष बने थे। भारतीय खेलों की कमान खिलाडिय़ों को देने की मांग जमाने से की जाती रही है। पर पिछले कुछ सालों से इस तरफ ध्यान दिया जाना खेलों के स्वास्थ के लिए अच्छा संकेत है। हम सभी जानते हैं कि दुनिया के सबसे अमीर खेल संगठन माने जाने वाले बीसीसीआई की कमान कुछ सालों पहले देश के सफलतम टेस्ट कप्तानों में शुमार रखने वाले सौरव गांगुली के हाथों में थी।
अब उनकी जगह यह जिम्मेदारी एक अन्य क्रिकेटर रोजर बिन्नी के हाथों में सौंपी गई है। इसी तरह भारतीय एथलेटिक्स फेडरेशन के अध्यक्ष आदिल सुमारिवाला, हॉकी इंडिया की कमान पूर्व भारतीय कप्तान दिलीप टिर्की के हाथों में दी गई। इसी तरह भारतीय फुटबाल फेडरेशन के अध्यक्ष भारतीय टीम के पूर्व गोलकीपर कल्याण चौबे बने हैं। इन संगठनों की कमान खिलाडिय़ों के हाथों में आने के परिणाम अभी आने बाकी हैं। हम सभी जानते हैं कि आईओए पिछले काफी समय राजनीति का शिकार था।
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने तो इस माह तक चुनाव नहीं कराने पर उसे निलंबित करने तक की चेतावनी दे दी थी। पर दो धड़ों के टकराव की वजह से चुनाव टलते आ रहे थे। आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद ही चुनाव संपन्न हो सके हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने अवकाश प्राप्त न्यायाधीश नागेर राव की देखरेख में चुनाव कराए हैं। इन चुनावों के बाद लगता है कि स्वच्छ हवा का झोका खेल गतिविधियों को पटरी पर ला सकेगा। देश की सर्वोच्च खेल संस्था आईओए के अध्यक्ष पद पर पीटी ऊषा के पहुंचने में इसके नये बने संविधान ने अहम भूमिका बनाई है। असल में इससे पहले राष्ट्रीय खेल फेडरेशनों और राज्य एसोसिएशनों के प्रतिनिधि ही अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों को चुना करते थे।
इसलिए पदाधिकारियों खासतौर से अध्यक्ष पद पर राजनेता या नौकरशाह ही पहुंच पाते थे, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में बने नये संविधान में इलेक्ट्रल कॉलेज में ३३ राष्ट्रीय खेल फेडरेशनों के एक-एक पुरुष और महिला प्रतिनिधि, आठ पुरुष और महिला खिलाड़ी और दो एथलेटिक कमीशन के दो खिलाड़ी और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की सदस्य नीता अंबानी सदस्य हैं। कुल ७७ सदस्यों में ३९ महिलाएं और ३८ पुरुष इलेक्ट्रल कॉलेज में शामिल हैं। पीटी ऊषा का आईओए में साथ निभाने के लिए निशानेबाज गगन नारंग, पहलवान योगेश्वर दत्त, तीरंदाज डोला बनर्जी, टेनिस खिलाड़ी डोला बनर्जी आदि कई खिलाड़ी हैं। नये संविधान के मुताबिक अब सचिव पद खत्म कर दिया या है।
उसकी जगह अब सीईओ की नियुक्ति होगी। आईओए के चुने गए पदाधिकारियों की इक यह खूबी है कि पिछले काफी समय से दो धड़ों में बंटे रहे इस संगठन इन धड़ों से जुड़े एक-आदि को छोड़कर कोई नहीं है। नए पदाधिकायिों में कोषाध्यक्ष सहदेव यादव को जरूर ललित भनोट धड़े से जरूर माना जा रहा है। पर बाकी पदाधिकारी धड़ों से नहीं होने के कारण इस संगठन के अब सुचारू रूप से संचालन की उम्मीद की जा सकती है। पीटी ऊषा ने अध्यक्ष चुने जाने पर कहा भी है कि हमारी कोशिश होगी कि खिलाडिय़ों को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए भटकना नहीं पड़े। आईओए के दरवाजे हमेशा उनके लिए खुले रहेंगे।
पीटी ऊषा की अगुआई वाले आईओए में तमाम खिलाड़ी होने से यह तो फायदा होगा कि खिलाडिय़ों की समस्याओं के समझने वाले होने से उनके हित वाली नीतियां बन सकेंगी। पर यह तब ही संभव हो सकेगा, जब ऊषा अपनी खिलाड़ी वाली छवि के हिसाब से ही काम करें। असल में केंद्र में शासित भाजपा सरकार ने इस साल पीटी ऊषा को राज्य सभा के लिए मनोनीत कराया था। आईओए चुनाव में भी उन्हें भाजपा समर्थित उम्मीदवार माना जा रहा था।
इसलिए उन्होंने राजनैतिक दल के हिसाब से काम किया तो बहुत संभव है कि वह बहुत सफल नहीं हो पाएं। फिर भी यह तो माना ही जा सकता है कि पीटी ऊषा खुद उम्दा खिलाड़ी रहीं हैं, इसलिए खिलाडिय़ों की समस्याओं का समाधान जरूर करेंगी। यही नहीं अन्य खिलाडिय़ों के सहयोग से आईओए यदि देश में ऐसा खेल माहौल बनाने में कामयाब हो जाता है, जिसमें हमारे खिलाड़ी ओलंपिक जैसे खेलों में डेढ़-दो दर्जन पदक ला सकें। वह अपने कार्यकाल में ऐसा कर सकीं तो उन्हें प्रशासक के रूप में खिलाड़ी की तरह ही दशकों तो याद रखा जाएगा।

 

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