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श्रीलंका अकेला नहीं

दुनिया एक कठिन मुकाम पर है। आर्थिक चुनौतियां और राजनीतिक उथल-पुथल मुंह बाये खड़ी हैं। श्रीलंका में इसका असर देखा जा चुका है। लेकिन ऐसे अनेक देश हैं, जहां हालात श्रीलंका जैसे ही हैं।
श्रीलंका अकेला नहीं है। वह पहला ज़रूर है। यानी आगे चल कर श्रीलंका जैसी हालत दुनिया के कई अन्य देशों में भी पैदा हो सकती है। ये चेतावनी संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अधिकारियों ने दी है। याद करें, विश्व बैंक के अध्यक्ष डेविड मैलपास ने कुछ रोज़ पहले ये कहा था कि निम्न और मध्यम आय वाले बहुत से देश कोरोना महामारी के असर, महंगाई, और कर्ज़ के बोझ के कारण मुसीबत में हैं। यूक्रेन युद्ध के कारण बने हालात ने उनकी समस्याएं और बढ़ा दी हैं। ऊर्जा, उवर्रक, और अनाज की अचानक बढ़ी महंगाई का उन्हें सामना करना पड़ रहा है। ब्याज़ दरें बढऩे की सूरत भी उनके सामने है। इन सबकी उन पर गहरी मार पड़ेगी। उधर संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी एजेंसी अंकटाड ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया में ऐसे १०७ देश हैं, जो अनाज की महंगाई, ईंधन की महंगाई, और राजकोषीय संकट में से किसी ना किसी एक स्थिति का सामना कर रहे हैं। ६९ देश ऐसे हैं, जिनके सामने ये तीनों समस्याएं खड़ी हैं।
विश्व बैंक के मुताबिक यूक्रेन युद्ध शुरू होने के पहले ही निम्न आय वाले देशों में साठ प्रतिशत कर्ज़ संकट में थे। यह समस्या खासकर उन देशों के साथ है, जिन्होंने विदेशी मुद्रा में कर्ज लिया। अब अमेरिका में ब्याज़ दर बढ़ने के कारण निवेशक निम्न और मध्य आय वाले देशों से अपना पैसा निकाल कर डॉलर में निवेश कर रहे हैं। इससे उन देशों की मुद्राएं दबाव में हैं। कोरोना महामारी के बाद यूक्रेन युद्ध से बने हालात ने वैसे तो सभी देशों पर असर डाला है। विकसित देश भी महंगाई और कई तरह की आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। लेकिन निम्न और निम्न-मध्य आय के देशों के सामने चुनौती कहीं ज्यादा है। आईएमएफ के मुताबिक मिस्र, ट्यूनिशिया, और पाकिस्तान को उसने राहत पैकेज दिया है। उनके अलावा कई अफ्रीकी देशों की हालत पर निकटता से नजर रखी जा रही है। टर्की में तो सालाना मुद्रास्फीति दर ७० प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। जाहिर है, दुनिया एक कठिन मुकाम पर है। आर्थिक चुनौतियां और राजनीतिक उथल-पुथल मुंह बाये खड़ी हैं।

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