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भारत और चीन का साथ : कितना मुमकिन

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक भाषण में कहा कि जब तक भारत और चीन मिल कर काम नहीं करते, एशियाई सदी का सपना पूरा नहीं होता। लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस समय भारत और चीन के संबंध बहुत कठिन दौर में हैं और ऐसा वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की हरकतों की वजह से हुआ है। चीन ने तुरंत इस बयान को लपक लिया। उसने एशियाई सदी के सपने की जयशंकर की बात का समर्थन किया। और इसमें जोड़ा कि इसके लिए समान दिशा में काम करना चाहिए। चीन ने तमाम हालिया बयान में ये संकेत दिए हैं कि उसकी नजर में भारत और चीन के रिश्तों में कोई पेचीदगी नहीं है। सब कुछ सामान्य है और भारत अगर समान दिशा में काम करे, तो बचे-खुचे सारे मसले दूर हो जाएंगे। यानी संबंध बेहतर करने की जिम्मेदारी वह भारत के पाले में डालता रहा है। तो उसकी अपेक्षाएं क्या हैं? संभवत: यही कि लद्दाख क्षेत्र में २०२० से जो कुछ हुआ है, भारत उसे स्वीकार कर आगे बढ़े।
अब भारत की मुश्किल यह है कि जयशंकर गाहे-बगाहे एलएसी की बात कहते हैं, लेकिन भारत सरकार का औपचारिक रुख अभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का १९ जून २०२० को दिया वह बयान ही है ‘ना कोई घुसा, ना कोई घुसा हुआ है।’ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी कह चुके हैं कि भारत ने एक इंच भी जमीन नहीं गंवाई है। तो घूम-फिर कर सवाल भारत सरकार की रणनीति और उसके मकसद पर आ जाता है। जब तक दो टूक समस्या नहीं बताई जाएगी, आखिर यह संदेश कैसे जाएगा कि चीन ने लद्दाख क्षेत्र में जो कुछ किया है, वह दोस्ताना नहीं है। साथ ही उसके उस रुख रहते ‘समान दिशा’ कैसे ढूंढी जा सकेगी? दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि भारत का भी बहुत बड़ा जनमत यही मानता है कि वर्तमान सरकार के दौर में चीन ने भारतीय भूमि पर कोई कब्जा नहीं जमाया है। यही धारणा चीन को सारी जिम्मेदारी भारत के पाले में डालने का मौका देती है। और जब तक ये स्थिति है, किसी समान दिशा की तलाश नामुमकिन बनी रहेगी।

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