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भाजपा और शिंदे की दुविधा

सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अब शिव सेना पर अपना नियंत्रण बनाने की पहल कर रहे हैं। उन्होंने पहला कदम बढ़ा दिया है। उद्धव ठाकरे खेमे में बचे हुए १५ विधायकों की सदस्यता खत्म करने का प्रस्ताव स्पीकर को दिया गया है। आदित्य ठाकरे को छोड़ कर बाकी विधायकों की सदस्यता खत्म कराने का दांव है। इसके साथ ही शिव सेना के सांसदों ने भी बगावती तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। एक सांसद ने कहा है कि उद्धव ठाकरे सभी सांसदों को एनडीए की राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट करने का निर्देश दें। राष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग के बहाने शिव सेना के सांसदों की बगावत होगी। इसके बाद सत्ता की मदद से पार्टी संगठन के पदाधिकारियों को तोडऩे का प्रयास होगा।
हालांकि मीडिया में ऐसी खबरें आ रही हैं कि शायद भाजपा और शिंदे गुट अब उद्धव ठाकरे को ज्यादा परेशान न करे और पार्टी उनके पास ही रहने दे। उनको लग रहा है कि अगर उद्धव को शिव सेना से बाहर किया और पार्टी हथियाई तो उलटी प्रतिक्रिया होगी और ठाकरे परिवार के लिए सहानुभूति बनेगी। सो, भाजपा और एकनाथ शिंदे दोनों दुविधा में हैं। पर मुश्किल यह है कि अगले तीन-चार महीने में बृहन्नमुंबई नगर निगम यानी बीएमसी के चुनाव हैं। बीएमसी नाम के तोते में ही शिव सेना की जान है। अगर शिव सेना और तीर-धनुष चुनाव चिन्ह उद्धव ठाकरे के पास रहा तो उनको हराना आसान नहीं होगा। दूसरा सवाल यह है कि अगर पार्टी उद्धव के पास रही तो एकनाथ शिंदे गुट किस पार्टी और किस निशान पर लड़ेगा? उनके भाजपा में जाने से भाजपा का मकसद पूरा नहीं होगा। एक रास्ता यह है कि शिंदे गुट के सभी विधायक राज ठाकरे की पार्टी में चले जाएं और उनका नेतृत्व स्वीकार करें। जो हो बीएमसी चुनाव के हिसाब से जल्दी ही इसका फैसला होगा।

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