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बिना हाथ के पैदा हो रहे बच्चे, सरकार ने देशव्यापी जांच के आदेश दिए

पैरिस। फ्रांस में बिना हाथ या हाथ की विकृति के साथ पैदा हो रहे बच्चों का मामला काफी चर्चा का विषय बन गया है। फ्रांस के कई इलाकों से जन्मदोष के ये मामले सामने आने के बाद एक डर का वातावरण तैयार हो गया है। अब फ्रांस की सरकार ने देशव्यापी स्तर पर इस मामले की जांच कराने का फैसला किया है। फ्रांस की पब्लिक हेल्थ एजेंसी के मुखिया फ्रॉन्स्वा बोदलॉन ने इसकी पुष्टि की है कि पहली बार इस मामले में राष्ट्रव्यापी जांच जारी है। उनके मुताबिक करीब 3 महीने में इस जांच के नतीजे सामने आ जाएंगे। उन्होंने RTL रेडियो पर श्रोताओं से कहा कि नागरिकों से कुछ भी छिपाया नहीं जाएगा। यह मामला सोमवार से तब कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गया, जब स्वास्थ्य विभाग ने 11 नए केसों को रिपोर्ट किया।
ये मामले 2000 से 2014 के बीच स्विस बॉर्डर के पास एन इलाके के थे, जिन्हें इससे पहले सार्वजनिक नहीं किया गया था। पिछले 15 सालों में फ्रांस के अलग-अलग इलाकों से ऐसे करीब 25 मामले सामने आए हैं। हालांकि इनकी संख्या ज्यादा नहीं है, लेकिन फ्रेंच मीडिया द्वारा मामला रिपोर्ट करने के बाद यह डर और बहस का विषय बन गया है। फ्रांस की स्वास्थ्य मंत्री ने भी इस समस्या को स्वीकार करते हुए टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि ये मामले पर्यावरण, प्रेगनेंट महिलाओं के खान-पान, किसी से भी जुड़े हो सकते हैं। हालांकि पेशे से डॉक्टर और इस समस्या को झेल चुकीं इजाबेल की चिंता अलग ही है। इजाबेल को 2012 में एक बिटिया हुई थी, जिसका बायां हाथ नहीं था। उनके मुताबिक जिस तरह से प्रशासन इन मामलों को हैंडल कर रहा है, संदेह पैदा हो रहा है।
उन्होंने अपनी बेटी के जन्म को याद करते हुए एएफपी को बताया कि यह एक बुरे स्वप्न को जीते रहने जैसा था। उनके मुताबिक बेटी के जन्म के कुछ महीने बाद उन्हें उत्तर-पश्चिमी फ्रांस में ऐसी ही समस्याओं से पीड़ित कुछ परिवार और मिले। इजाबेल का कहना है कि स्वास्थ्य अधिकारियों ने हम जैसे लोगों की चिंताओं को दूर नहीं किया। इजाबेल ने कहा कि उनके समेत ऐसे सभी परिवारों को लगा कि प्रशासन इस मामले को दबाना चाहता था। 1950 और 1960 के दशक में पूरी दुनिया में हजारों बच्चे अंग विकृति के साथ पैदा हुए। तब इस मामले को थालिडोमाइड दवा से जोड़ा गया, जिसका इस्तेमाल गर्भवती महिलाओं की उबकाई जैसी समस्या के इलाज में किया जाता था। 1960 के दशक में इस दवा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

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