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पर्यावरण की फ़िक्र कौन करता है!

पर्यावरणीय प्रदर्शन इंडेक्स (ईपीआई) में भारत 180 देशों की सूची में अंतिम स्थान पर है। ईपीआई को तैयार करने के लिए संबंधित संस्थाओं ने ४० परफॉरमेंस इंडिकेटर्स का अध्ययन किया है। इन संकेतकों को ११ श्रेणियों में बांटा गया है।
भारत सरकार ने भले इस पर एतराज किया हो, लेकिन उसकी नीति से परिचित किसी व्यक्ति को इस हफ्ते आई इस खबर से शायद ही आश्चर्य हुआ होगा कि पर्यावरणीय प्रदर्शन इंडेक्स (ईपीआई) में भारत सबसे निचले पायदान पर आया। अमेरिका स्थित येल सेंटर फॉर एनवॉरमेंटल लॉ एंड पॉलिसी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इंफॉर्मेशन नेटवर्क ने अपने साझा अध्ययन के आधार पर ये सूचकांक तैयार किया। इसमें १८० देशों में पर्यावरण संरक्षण की स्थिति पर गौर किया गया। इस सूची में भारत को १८०वें स्थान पर रखा गया। अब भारत की मौजूदा सरकार के समर्थक चाहें, तो इसे देश के खिलाफ एक और साजिश बता सकते हैं। लेकिन हमेशा दूसरों की नजर में खोट निकालने के नजरिए से उबर कर वे देखें, तो उन्हें भी यह समझने में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी कि आखिर भारत की इतनी खराब छवि क्यों उभरी। गौरतलब यह है कि ईपीआई को तैयार करने के लिए संबंधित संस्थाओं ने ४० परफॉरमेंस इंडिकेटर्स का अध्ययन किया है। इन संकेतकों को ११ श्रेणियों में बांटा गया है।
इन श्रेणियों में जलवायु परिवर्तन परफॉरमेंस, एनवायरमेंटल हेल्थ और इकोसिस्टम वाइटिलिटी शामिल है। इन संकेतकों से जाहिर होता है कि कोई देश पर्यावरण के लिए तय नीतिगत लक्ष्यों से अभी कितनी दूर है। अब बेहतर यह होगा कि इन श्रेणियों और संकेतकों के आधार पर खुद भारत की स्थिति की समीक्षा कर ली जाए। और फिर यह याद किया जाए कि वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद किस तरह पर्यावरण संरक्षण संबंधी कानूनों की धज्जियां उड़ाई है। पर्यावरण को लेकर जागरूकता या जरूरी सख्ती पहले भी नहीं थी। पिछली यूपीए सरकार के दौरान कानूनों को लागू करने में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे। लेकिन तब कम से कम एक बात यह जरूर थी कि कानूनों को सख्त किया जा रहा था। साथ ही उन पर अमल में जन संगठनों की भागीदारी बनाने की पहल की गई थी। लेकिन मोदी सरकार ने उन सबको ताक पर रख दिया। इस दौर में अकेला जोर पूंजी को मुनाफा कमाने की निर्बाध छूट देने पर रहा है। ऐसे में प्रकृति का जो दोहन हुआ है, उसका परिणाम और क्या हो सकता है?

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