गुजरात में चुनाव कार्यक्रम का ऐलान होने से ठीक पहले प्रकाशित एक जनमत सर्वेक्षण से यह मालूम हुआ है कि इस समय वहां के लोगों को कौन-से मुद्दे सबसे ज्यादा उद्वेलित कर रहे हैं। सीएसडीएस के इस सर्वे में ५१ प्रतिशत लोगों ने महंगाई को अपनी सबसे बड़ी परेशानी बताया। बेरोजगारी और गरीबी को जोड़ दें, तो आर्थिक मुद्दों को अपनी सबसे बड़ी परेशानी बताने वाले लोगों की संख्या ७० फीसदी से ऊपर पहुंच जाती है। इसके अलावा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से ठीक पहले ही मोरबी का हादसा हुआ, जिसने कथित तौर पर विकास के ‘गुजरात मॉडल’ की सच्चाई को उजागर किया है। गुजरात ऐसा राज्य है, जहां कोरोना महामारी के दौरान मृतकों और पीड़ितों की संख्या को छिपाने की सबसे ज्यादा कोशिशों के आरोप लगे थे। तो प्रश्न है कि क्या ये मसले विधानसभा चुनाव में प्रमुख मुद्दे बनेंगे? इस वर्ष के आरंभ तक दूसरे राज्यों में हुए चुनावों से सामने आया था कि राजनीतिक जनादेश का निर्माण करने में ऐसे मसले लगभग अप्रासंगिक बने हुए हैं।
अब कांग्रेस ने राजनीति का अलग तरीका अपनाया हुआ है। भारत जोड़ो यात्रा के साथ-साथ गुजरात में पांच यात्राएं निकाली गई हैं, जिनके बारे में बताया गया है कि वे पूरे राज्य से गुजरेंगी। तो प्रश्न है कि क्या इन यात्राओं के जरिए कांग्रेस लोगों की परेशानी और सत्ताधारी भाजपा की विफलता को चुनावी चर्चा के केंद्र में ला पाएगी? अगर वह नहीं ला पाई तो इसका यही अर्थ समझा जाएगा कि सिर्फ आलोचना की राजनीति अब कारगर नहीं रही है। कांग्रेस के हाल के तमाम अभियानों की कमी यही है कि उनके जरिए वह देश के सामने राष्ट्र निर्माण और आम जन की खुशहाली का कोई नया सपना नहीं रख पाई है। ऐसे में परेशान लोगों को हिंदुत्व की राजनीति से गोलबंद किए रखने में भाजपा सफल बनी रही है। गुजरात भाजपा की ऐसी राजनीति का प्रयोगस्थली था। यहीं से वह यह कारगर मॉडल लेकर सारे देश में पहुंची। ऐसे में स्वाभाविक ही है कि यहां से उभरने वाले संकेतों पर सारे देश की नजर रहेगी।



