बेंगलुरु। कर्नाटक की तीन लोकसभा और दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को शानदार सफलता मिली है। इसके बाद देशभर में इस बात पर बहस छिड़ गई है कि क्या इन नतीजों से बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन बनाने के प्रयास तेज होंगे? दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के नेतृत्व में ऐंटी-बीजेपी पार्टियों खासतौर से क्षेत्रीय दलों की ओर से अलायंस बनाने की कोशिश हो रही है।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, ‘उपचुनाव के नतीजे निश्चित तौर पर क्षेत्रीय पार्टियों को अपने मतभेदों को भुलाकर हाथ मिलाने के लिए प्रेरित करेंगे, जो फिलहाल बीजेपी के खिलाफ अकेले लड़ने को लेकर चिंतित हैं। हम इसे जल्द देख सकते हैं।’ आपको बता दें कि 3 नवंबर को हुए उपचुनावों में कांग्रेस-JD (S) गठबंधन ने बड़े अंतर से तीन में से 2 लोकसभा और दोनों विधानसभा सीटें जीत ली हैं। इसमें भी बेल्लारी लोकसभा सीट पर कांग्रेस का दोबारा कब्जा करना काफी मायने रखता है। यह सीट बीजेपी के पास पिछले 14 वर्षों से थी। 4-1 की यह जीत ऐसे समय में मिली है जब क्षेत्रीय पार्टियां खासतौर से मायावती की पार्टी बीएसपी महागठबंधन से अलग रुख अख्तियार करती दिख रही हैं। हालांकि इससे पहले मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी एकता देखने को मिली थी।
सीट शेयरिंग को लेकर मतभेदों के चलते मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीएसपी के बीच गठबंधन की वार्ता फेल हो गई। कांग्रेस से बड़े मतभेदों के चलते दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि अगले आम चुनावों में उनकी आम आदमी पार्टी (AAP) अकेले चुनाव लड़ेगी। ये कुछ ऐसे घटनाक्रम हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन की कोशिशों की संभावना पर संदेह पैदा करते हैं। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि अपने राजनीतिक अस्तित्व की मजबूरी क्षेत्रीय पार्टियों को साथ लाएगी। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बिहार में समाजवादी पार्टी (SP) और बीएसपी का केस बताया, जो पहले एक दूसरे से आंख मिलाना भी नहीं चाहती थीं। बताते हैं, ‘कर्नाटक के उपचुनावों ने दिखाया है कि अगर वे (विपक्षी पार्टियां) साथ आती हैं, मिलकर काम करती हैं और साथ रहती हैं तो वे बीजेपी को चुनौती दे सकती हैं।’ उन्होंने आगे कहा कि यह देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन के लिए उपचुनाव के नतीजे आधार बनते हैं या नहीं?
सुझाव है कि 2019 से पहले महागठबंधन को हकीकत में बदलने के लिए जेडीएस के प्रमुख एचडी देवगौड़ा को खुद आगे आना चाहिए। प्रकाश ने कहा, ‘उपचुनाव नतीजों ने कर्नाटक में कांग्रेस और JD (S) के गठजोड़ की महत्ता को दिखाया है। चूंकि कई क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध हैं और वह खुद देश के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं, ऐसे में देवगौड़ा स्वाभाविक तौर पर महागठबंधन को मजबूत करने के लिए कांग्रेस के साथ मिलकर काम करेंगे।’ हालांकि एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि अकेले उपचुनाव के नतीजों से महागठबंधन बनाने की कोशिशें तेज नहीं होंगी। इसके लिए क्षेत्रीय पार्टियों की रुचि भी मायने रखती है। कहते हैं, ‘इस समय तो हर पार्टी अपने बारे में सोच रही है और हर राज्य के हालात भी अलग हैं।’ रामास्वामी ने कहा, ‘क्षेत्रीय नेता स्वाभाविक तौर पर पहले अपने अस्तित्व पर फोकस करेंगे और इसके बाद ही संबंधित राज्यों में अवसर तलाशेंगे।’
