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उत्तराखण्ड में अंकिता हत्या काण्ड के सबक – अजय दीक्षित

उन्नीस साल की एक लड़की अंकिता की हत्या को लेकर पूरा उत्तराखण्ड आग में उबल रहा है । इस गरीब परिवार की लड़की ने एक रिसोर्ट में कुछ दिन पहले ही रिसेप्शनिस्ट की नौकरी शुरू की थी । शायद उस पर कुछ दबाव था, जिसका उसने इंकार कर दिया था तो उसके मालिक ने अपने दो साथियों के साथ मिलकर नदी में ढकेल दिया और डूबने से उसकी मृत्यु हो गई । बाद में सरकारी प्रयास से तीन दिन बाद उसकी लाश बरामद की गई । रिसोर्ट के मालिक भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का लड़का है । इसी से उत्तराखण्ड की सरकार के ऊपर दबाव था कि तुरन्त कार्यवाही करें । सरकार ने रिसोर्ट पर बुलडोजर चला दिया, इससे साक्ष्य मिट गये । लगता है सरकारी महकमा भी भाजपा के दबाव में शुरू में कुछ करना नहीं चाहता था । बाद में जनता के दबाव के कारण कार्यवाही करने का ढोंग किया जा रहा है ।
परन्तु इस घटना से लड़कियों को कुछ सबक लेना चाहिए । किसी के यहॉं नौकरी करने से पहले मालिक के चरित्र व उसकी प्रतिष्ठा के बारे में जॉंच लेना चाहिए । फिर ऐसी जगह नौकरी नहीं करनी चाहिए जो स्थान मुख्य शहर या मुख्य बाजार से दूर हो । जहॉं तक हो सकें अपनी नई नौकरी के स्थान की सूचना पुलिस थाने में दर्ज करा देनी चाहिए । साथ ही समय-समय पर अपने मोबाइल से अपने घरवालों को अपनी लोकेशन के बारे में बता देना चाहिये । जरा सी भी शंका होने पर तुरंत नौकरी के लालच में न पड़कर पुलिस और घर के बुजुर्गों की सलाह पर आगे की कार्यवाही करनी चाहिए ।
असल में लड़कियों के लिए भारत में कोई सुरक्षित स्थान नहीं है । यद्यपि वर्तमान केन्द्रीय सरकार मातृ देवो भव का मंत्र जपती रहती है । भाजपा की राज्य सरकारें भी बहुत कुछ सहृदय नहीं है । मामा कहलाना आसान है । पर मामा का धर्म निभाना बहुत मुश्किल है । हिन्दुओं और मुसलमानों में मामा को भांजी की शादी में बहुत कुछ देना होता है । हिन्दुओं में उसे भात कहते हैं ।
अभी हाल में २२ सितम्बर को रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इण्डिया में भारत के २८ राज्यों और ८ केन्द्र शासित प्रदेशों में सेक्स-रेशियो (लिंगानुपात) की संख्या घोषित की है । लिंगानुपात में प्रति एक हजार जीवित लड़कों में लड़कियों की संख्या हजार बतलाई जाती है । इस घोषणा के अनुसार सन् २०१८-२० में यह लिंगानुपात ९०७ है, अर्थात् प्रति १,००० लड़कों में लड़कियों की संख्या ९०७ हैं । परन्तु कई राज्यों में यह संख्या बहुत कम है ।
उत्तराखण्ड में जहॉं अंकिता के मामले को लेकर बवाल मचा हुआ है, वहॉं लिंगानुपात मात्र ८४४ है अर्थात् १००० जीवित लड़कों में लड़कियों की संख्या मात्र ८४४ है जबकि केरल में यह संख्या ९७४ है ।
ग्रामीण उत्तर काशी जिले में यह संख्या ८५३ है जबकि २०१७ में यह संख्या ८६२ थी अर्थात् नौ अंकों की गिरावट आई है । २०१७ से २०२२ तक उत्तराखण्ड में भाजपा की ही सरकार थी जो उनकी नाकामी का प्रमाण है ।
देहरादून में आधारित एक स्वयंसेवी संस्था समाधान की निदेशिका रेण्ड का कहना है कि उत्तराखण्ड में लिंगानुपात गिरने का कारण मुख्य थे या महिलाओं का अधिकार विहीन होना है । उनका परिवार की संपदा में कोई अधिकार नहीं है । वे उच्च शिक्षा से वंचित हैं । उनके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं । उन्हें पर्वतीय क्षेत्रों में कठिन जीवन जीना पड़ता है । मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री आज कल नायक फिल्म के अनिल कपूर जैसा रोल अदा कर रहे हैं। मौके में ही अधिकारियों को निलंबित कर रहे हैं । सरकार चलाने और तुरन्त निर्णय लेने के लिए ऐसा सख्त मुख्यमंत्री ही होना चाहिए । परन्तु उत्तराखण्ड में वास्तविक लाभ देने के लिए काफी योजना बनानी पड़ती है। उसके लिए समय चाहिए। समय तो विपक्ष को कोसने में चला जाता है।
(यह लेखक के स्वतंत्र विचार हैं।)

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