नई दिल्ली। आप यकीन कर पाएंगे कि कभी जेट एयरवेज को महज 1 रुपए की जरूरत थी। तब वह इस 1 रुपए का जुगाड़ कर पाती तो आज उसकी ऐसी हालत नहीं होती। सबसे पुरानी यह देसी प्राइवेट एयरलाइन कंपनी अभी-अभी कर्ज की किस्त नहीं चुका पाई। पायलटों और अन्य कर्मचारियों को वेतन देने में उसे पिछले कई महीनों से मशक्कत करनी पड़ रही है। यह सब उसी 1 रुपए की कमी के कारण हुआ। आइए जानते हैं इस 1 रुपए के भयावह अर्थशास्त्र के बारे में।
दरअसल, जेट एयरवेज उपलब्ध सीटों पर प्रति किलोमीटर अपनी बड़ी प्रतिद्वंद्वी एयरलाइन इंडिगो के मुकाबले 1 रुपया ज्यादा खर्च करती है। यह 1 रुपए का अंतर ईंधन की लागत को छोड़कर अन्य खर्चों पर आधारित है। 2015 के खत्म होते-होते जेट को इंडिगो के मुकाबले हर सीट पर प्रति किलोमीटर महज 50 पैसे ज्यादा कमाई हो रही थी। तब इंडिगो के मालिकाना हक वाली कंपनी इंटरग्लोब एविएशन ने जेट को पछाड़ने का प्लान बनाया और अपना ऑपरेशन 2.5 गुना तेज कर दिया। उसने अपने टिकट भी सस्ते कर दिए जिससे उसे 2016 के पहले नौ महीनों तक रेवेन्यू में प्रति किलोमीटर 90 पैसे का नुकसान बर्दाश्त करना पड़ा। तब जेट 1 रुपये प्रति किलोमीटर की दर से टिकट सस्ता कर पाती तो उसे इंडिगो से शायद मात नहीं खानी पड़ती। लेकिन, वह ऐसा नहीं कर पाई क्योंकि तब वह पहले से ही कर्ज में थी। फिर भी उसने 90 पैसे की जगह हर सीट पर 30 पैसे प्रति किलोमीटर की दर से नुकसान उठाने का साहसिक फैसला किया। यानी, 50 पैसे का हो रहा मुनाफा और 30 पैसे का अतिरिक्त घाटा मिलाकर उसके रेवेन्यू में हर सीट पर प्रति किलोमीटर कुल 80 पैसे की दर से नुकसान होने लगा। स्पष्ट है कि जेट का यह प्रयास घातक साबित हुआ और कंपनी को अपनी लागत से कम पर टिकट बेचने पड़े।
फिर सितंबर 2017 में ईंधन की कीमतें (Fuel prices) बढ़नी शुरू हुईं और पूरे साल बढ़ती रहीं। इससे पूरी एविएशन इंडस्ट्री हिल गई, लेकिन जेट तो बर्बाद ही हो गई। अब तेल की कीमतें फिर से घट चुकी हैं और जेट लागत करने के सारे विकल्पों पर काम कर रही है, लेकिन मेंटनेंस पर सालाना करीब 7 अरब रुपये बचाने में वह कामयाब हो भी जाए, फिर भी उसे कर्ज के जाल से मुक्ति नहीं मिल पाएगी। उसे मार्च 2021 तक 63 अरब रुपये कर्ज चुकाना है। जेट की हालत यह है कि सितंबर के आखिर तक उसके पास 124 जहाजों का बेड़ा था जिसमें उसके खुद के महज 16 जहाज थे। आशंका है कि ये कहीं ये 16 जहाज भी बिक ने जाएं।
