126 Views

अगर धरती गर्म होती जा रही है, तो फिर इतनी ठंड क्यों?

नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन के कारण धरती का औसत तापमान बढ़ता जा रहा है। हम आए दिन खबरों में पढ़ते हैं कि तापमान बढ़ने से अंटार्कटिका जैसे क्षेत्रों की बर्फ पिघल रही है। ऐसे में जल का स्तर बढ़ रहा है, जिससे कुछ समय बाद दुनिया के जलमग्न होने की संभावना है। इसी कारण ग्लोबल वार्मिंग को लेकर आए दिन चर्चाएं होती हैं, बड़े-बड़े फैसले होते हैं। लेकिन जब तापमान बढ़ रहा है तो फिर इस वक्त इतनी सर्दी क्यों है? ये सवाल न केवल आम लोगों के मन में उठ रहा है, बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मन में भी उठ रहा है। ये सवाल उठना लाजमी भी है। राष्ट्रपति ट्रंप भी उन्हीं लोगों में से एक हैं, जो पूछ रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग कहां गई? उन्होंने सोमवार को ट्वीट कर कहा, “तापमान माइनस 60 तक पहुंच गया है, रिकॉर्ड स्तर पर ठंड है। आने वाले दिनों में ठंड अधिक बढ़ने की संभावना है। लोग कुछ मिनट के लिए भी घर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के साथ क्या हो रहा है? प्लीज जल्दी आओ, हमें तुम्हारी जरूरत है?” इस सवाल का जवाब छिपा है जलवायु और मौसम के बीच अंतर में। लंबी अवधि में वातावरण में जो कुछ हो रहा है, उस स्थिति को जलवायु कहा जाता है। वहीं किसी छोटी अवधि में वातावरण में जो हो रहा है, उसे मौसम कहते हैं। मौसम निश्चित समय अंतराल पर बदलता रहता है। कुछ समय तक सर्दी रहती है तो कुछ समय तक गर्मी। वहीं जलवायु वातावरण का एक समग्र रूप है।
इस बात को एक उदाहरण से समझा जा सकता है। मान लीजिए मौसम आपके बटुए में रखे पैसे हैं। वहीं जलवायु आपकी संपत्ति है। अगर आपका बटुआ खो जाए तो कोई गरीब नहीं होगा लेकिन अगर संपत्ति ही नष्ट हो जाए तो व्यक्ति बर्बाद हो जाता है। ठीक ऐसा ही संबंध जलवायु और मौसम के बीच है। जिस दिन आपके आसपास का तामपान औसत से कम हो जाता है, ठीक उसी वक्त पूरी धरती का औसत तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है। अगर आंकड़ों के सहारे हम इसे समझें तो दिसंबर 2017 में जब अमेरिका का कुछ हिस्सा औसत से 15 से 30 डिग्री फारेनहाइट तक ज्यादा सर्द था, उसी वक्त दुनिया 1979 से 2000 के बीच औसत से 0.9 डिग्री फारेनहाइट ज्यादा गर्म थी। जब मौसम वैज्ञानिक कहते हैं कि धरती का तापमान औसत से दो से सात डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ जाएगा तो इसका मतलब ये नहीं होता कि सर्दियां कम हो जाएंगी, इसका मतलब होता है कि सर्दी जितने दिन होती है, वो दिन कम हो जाएंगे। आसान भाषा में समझें तो मौसम पहले की तरह ही सर्द रहता है, लेकिन सर्दी का दायरा कम हो जाता है। एक अध्ययन के अनुसार 1950 के दशक में अमेरिका में सबसे गर्म और सबसे ठंडे दिनों की संख्या लगभग बराबर थी। वहीं 2000 के दशक में सबसे गर्म दिनों की संख्या ठंडे दिनों से दोगुनी हो गई। इसका मतलब ये है कि सर्दी तो कड़ाके की पड़ रही है, लेकिन सर्द दिनों की संख्या कम होती जा रही है। राष्ट्रपति ट्रंप की भी निंदा की जा रही है, कि उन्होंने इतने गंभीर मुद्दे को हल्के में लिया है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top