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२००३ का नदीमर्ग कश्मीरी पंडित नरसंहार मामला फिर से खोलने का आदेश

श्रीनगर ,०२ सितंबर । केंद्र शासित प्रदेश सरकार द्वारा दायर एक आवेदन पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने नदीमर्ग नरसंहार मामले को फिर से खोलने का आदेश दिया है, जिसमें २३ मार्च, २००३ को पुलवामा जिले में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों द्वारा २४ कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी गई थी। अभियोजन पक्ष के माध्यम से केंद्र शासित प्रदेश सरकार द्वारा दायर आवेदन में एक दशक पहले एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज करने और मामले को प्रभावी ढंग से बंद करने के एक पुराने आदेश को वापस लेने की मांग की गई थी।
हाईकोर्ट ने अब आदेश दिया है कि सुनवाई १५ सितंबर को फिर से शुरू होगी।
सेना की वर्दी में नकाबपोश लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने २३ मार्च, २००३ की रात को नदीमर्ग गांव में हमला किया था, जहां १९९० के दशक की शुरुआत में लगभग ५२ कश्मीरी पंडित रहते थे।
आतंकवादियों ने ११ पुरुषों, ११ महिलाओं और दो बच्चों को कतार में खड़ा कर उन पर स्वचालित गोलियों से बौछार की थी।
नरसंहार में शामिल कई आतंकवादी या तो मारे गए या बाद के वर्षों में पकड़ लिए गए।
जांच के बाद सात संदिग्धों को आरोपित किया गया था और मामला शोपियां सत्र अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था। मुकदमे के लंबित रहने के दौरान सबूतों और गवाहों की जांच की मांग वाली एक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया गया था।
अभियोजन पक्ष ने उस समय अपने आवेदन में कहा था कि गवाह घाटी से बाहर चले गए थे और डर के कारण अदालत में पेश होने से हिचक रहे थे।
निचली अदालत ने कहा था कि समीक्षा की अनुमति देना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इसके बाद उच्च न्यायालय ने २१ दिसंबर, २०११ को पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी।
इसके बाद २०१४ में नई अर्जी दाखिल की गई।
न्यायमूर्ति संजय धर ने अपने आदेश में कहा, पूर्वगामी कारणों से अभियोजन के आवेदन की अनुमति दी जाती है और इस अदालत द्वारा पारित आदेश दिनांक २१-१२-२०११ को वापस लिया जाता है। रजिस्ट्री को १५-०९-२०२२ को पुनरीक्षण के लिए पुनरीक्षण याचिका पोस्ट करने का निर्देश दिया जाता है।

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