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वैश्विक परिदृश्य से गायब हो रही कूटनीति

आलोचक कभी हेनरी किसिंजर को उग्र-साम्राज्यवादी बता कर उनकी आलोचना करते थे। लेकिन आज के संदर्भ में उन्हीं आलोचकों के बीच ९९ वर्षीय किसिंजर को एक यथार्थवादी और मॉडरेट माना जाता है। अगर गंभीरता से गौर किया जाए, तो पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री किसिंजर जिन बातों की पैरोकारी १९६० या १९७० के दशक में करते थे, उनकी सोच कमोबेश आज भी उसी बिंदु पर कायम है। तो संभवत: अमेरिकी राजनीति का यह दक्षिणोन्मुख गमन (राइट विंग शिफ्ट) है, जिसकी वजह से तब के दक्षिणपंथी किसिंजर आज मध्यमार्ग में मौजूद नजर आते हैँ। बहरहाल, फिलहाल किसिंजर की चर्चा यूक्रेन युद्ध के बारे में उनके सामने आए विश्लेषण की वजह से है। किसिंजर मानते हैं कि पश्चिमी देश चाहते तो यूक्रेन युद्ध को रोका जा सकता था। बल्कि अभी भी वे अगर वे समाधान के लिए कूटनीति का सहारा लें, तो दुनिया पर परमाणु युद्ध के मंडरा रहे खतरे को टाला जा सकता है। लेकिन फिलहाल किसी क्षेत्र से किसी कूटनीतिक पहल के संकेत नहीं दिखते। जबकि यूक्रेन युद्ध लगातार अधिक खतरनाक मोड़ लेता जा रहा है।
पहले मास्को में एक धुर-दक्षिणपंथी विचारक की कार उड़ा कर हत्या, फिर नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइनों में तोडफ़ोड़ और बीते हफ्ते क्राइमिया ब्रिज पर विस्फोट के बाद रूस ने सोमवार को जिस बड़े पैमाने पर यूक्रेन पर मिसाइल हमला किया, उससे ये युद्ध एक नए मुकाम पर पहुंच गया है। अब ये आशंका गहराती जा रही है कि धीरे-धीरे दूसरे देश भी इस युद्ध में उलझ सकते हैं। बेलारुस इस बात का ठोस संकेत दे चुका है। अगर पश्चिमी देश भी इसमें उलझे, तो फिर खतरा कहां तक जाएगा- इस बारे में आज कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता। इसलिए इस समय सबसे पहली जरूरत कूटनीतिक संवाद की है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि बेअसर होते-होते संयुक्त राष्ट्र अब इस लिहाज से अप्रासंगिक-सा हो चुका है। निर्गुट आंदोलन जैसा कोई मंच भी आज दुनिया में नहीं है, जो इसकी पहल कर सके। ऐसे ये जिम्मेदारी दुनिया की सबसे बड़ी ताकतों को ही लेनी होगी। लेकिन घरेलू राजनीति और निहित स्वार्थों का दबाव उनके नेतृत्व को ऐसा करने देगा, इसकी संभावना कम नजर आती है।

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