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क्वाड अब प्राथमिकता नहीं

अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति के तहत बनाया गया समूह- क्वाड्रैंगुलर सिक्युरिटी डॉयलॉग (क्वाड) अमेरिका की प्राथमिकता में नीचे चला गया है। इस बात का संकेत तो तभी मिल गया, जब पिछले महीने क्वाड शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए नई दिल्ली आने से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इनकार कर दिया। इस कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह योजना कामयाब नहीं हो सकी कि क्वाड में शामिल अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के नेता २५ जनवरी को क्वाड शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड में साझा मुख्य अतिथि होंगे। अब नई दिल्ली स्थित अमेरिकी राजदूत एरिक गारसेटी स्पष्ट किया है कि क्वाड का संचालक की कुर्सी पर भारत विराजमान है और अमेरिका उसकी बगल की सीट पर बैठा है, जिसके पास सिर्फ भटकाव सुधार का हैंडल है। इसका अर्थ यह संदेश है कि क्वाड को क्या भूमिका देनी है, यह भारत खुद तय करे।
उन्होंने जो कहा कि उसका अर्थ यह भी है कि फिलहाल क्वाड दिशाहीन है। गारसेटी ने यह साफ कर दिया कि राष्ट्रपति जो बाइडेन अगले नवंबर में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के पहले भारत नहीं आ पाएंगे। उसी परिचर्चा में भारत के तत्कालीन विदेश सचिव श्याम शरण ने यह राज़ खोला कि जब २००७ में तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने पहली बार क्वाड का प्रस्ताव रखा था, तब अमेरिका ने भारत को संदेश भेजा था कि वह इस योजना को ज्यादा प्रोत्साहित ना करे। वजह थी कि तब अमेरिका ऐसा कदम उठाने से बचना चाहता था जो चीन को नागवार गुजरे। २०१८ में चीन के साथ शुरू हुए शीत युद्ध के क्रम में संभवत: अमेरिका को क्वाड की जरूरत महसूस हुई, तो इस समूह को खूब महत्त्व मिला। लेकिन अब बनी परिस्थितियों में अमेरिका चीन के साथ युद्ध से बचने की नीति पर चल रहा है। व्यापारिक क्षेत्र में संबंध विच्छेद के बजाय संबंध में जोखिम घटाने की नीति पहले ही अपनाई जा चुकी है। तो लाजिमी है कि क्वाड भी उसकी प्राथमिकता में नीचे चला गया है। अब यह बाकी तीन देशों को सोचना है कि क्वाड सचमुच कितना उनके अपने हित में है?

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