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हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, कई देशों ने कम की सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र, हमें भी करना चाहिए विचार

मुंबई,१५ जुलाई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि कई देशों ने किशोरों के लिए शारीरिक संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र कम कर दी है और अब समय आ गया है कि हमारा देश भी दुनिया भर में होने वाली घटनाओं से अवगत हो, क्योंकि कई किशोरों पर मुकदमा चलाया जा रहा है। नाबालिग लड़कियों के साथ सहमति से संबंध बनाए रखने के लिए जेल भेजा गया है। जस्टिस भारती डांगरे की सिंगल जज की बेंच ने कहा, पॉक्सो एक्ट विपरीत लिंग के प्रति प्राकृतिक भावनाओं को नहीं रोक सकता है, विशेष रूप से किशोरों में बायोलॉजिकल और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों के कारण। इसलिए एक नाबालिग लड़के को एक नाबालिग लड़की के साथ संबंध बनाने के लिए दंडित करना बच्चे के हित के खिलाफ होगा।

जस्टिस डांगरे ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि समय के साथ, भारत में विभिन्न कानूनों द्वारा सहमति की आयु में वृद्धि की गई है और इसे १९४० से २०१२ तक १६ वर्ष तक बनाए रखा गया। तब पॉक्सो एक्ट ने इसे बढ़ाकर १८ वर्ष कर दिया था। उन्होंने कहा, ”यह संभवतः विश्व स्तर पर सहमति की सबसे ज्यादा आयु में से एक है, क्योंकि अधिकांश देशों ने सहमति की आयु १४ से १६ वर्ष के बीच निर्धारित की है।” कोर्ट ने कहा, “जर्मनी, इटली, पुर्तगाल, हंगरी आदि देशों में १४ साल की उम्र के बच्चों को सेक्स के लिए सहमति देने के लिए सक्षम माना जाता है।” उन्होंने कहा कि इंग्लैंड और वेल्स और यहां तक कि बांग्लादेश और श्रीलंका में भी सहमति की उम्र तय की गई है जोकि १६ वर्ष है। जापान में यह १३ साल है।” कोर्ट ने आगे कहा कि जहां तक भारत का सवाल है, बाल विवाह निषेध अधिनियम, २००६ के अनुसार पुरुष और महिला के लिए विवाह की आयु क्रमशः २१ और १८ वर्ष तय की गई है। बच्चे शब्द की परिभाषा कानून के अनुसार अलग- अलग होती है। कानून और पॉक्सो एक्ट के अनुसार, १८ वर्ष से कम उम्र के किशारे को बच्चा माना जाता है और यह उनके साथ सभी यौन गतिविधियों को अपराध मानता है, भले ही यह सहमति से किया गया हो। बेंच ने जोर देकर कहा कि सहमति की उम्र को शादी की उम्र से अलग किया जाना चाहिए, क्योंकि यौन कृत्य केवल शादी के दायरे में नहीं होते हैं और न केवल समाज, बल्कि न्यायिक सिस्टम को भी इस महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान देना चाहिए।

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