91 Views

शिव साधना का महान पर्व है सावन की शिवरात्रि!-डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

अज्ञान के अंधकार
का अंत है शिव रात्रि
ज्ञान के सूर्योदय की
पावन बेला है शिव रात्रि
शिव जो कल्याणकारी है
शिव जो मंगलकारी है
शिव जो जगत्पिता है
शिव के पावन अवतरण
की मधुर याद है शिव रात्रि
शिव परमात्मा नम:मन्त्र
का उदघोष काल है शिवरात्रि
पतित से पावन बनाने की
इंसान से देवता बनाने की
शुभ घड़ी का नाम है शिवरात्रि।
परम-आत्मा का ही नाम है शिव, जिसका संस्कृत अर्थ है ‘सदा कल्याणकारी’, अर्थात वो जो सभी का कल्याण करता है। शिवरात्रि व शिव जयन्ती भारत में द्वापर युग से मनाई जाती है। यह दिन हम ईश्वर के इस धरा पर अवतरण के समय की याद में मनाते हैं। शिव के अलावा ओर किसी को भी हम ‘परम-आत्मा’ नहीं कहते। शिव के साथ रात शब्द इसलिए जुड़ा है क्योकि वो अज्ञान की अँधेरी रात में इस सृष्टि पर आते हैं। जब सारा संसार, मनुष्य मात्र अज्ञान रात्रि में, अर्थात माया के वश हो जाता है, जब सभी आत्माएं पांच विकारों के प्रभाव से पतित हो जाती हैं, जब पवित्रता और शान्ति का सत्य धर्म व स्वयं की आत्मिक सत्य पहचान हम भूल जाते है। सिर्फ ऐसे समय पर, हमे जगाने, समस्त मानवता के उत्थान व सम्पूर्ण विश्व में फिर से शान्ति, पवित्रता और प्रेम का सत-धर्म स्थापित करने परमात्मा एक साधारण शरीर में प्रवेश करते हैं।
भगवत गीता में यह श्लोक है जो इसे दर्शाता है :
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भव- ति भारत ।
अभ्युत्थान- मधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्- ॥४-७॥
परित्राणाय- साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्- ।
धर्मसंस्था- पनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ४-८ ।। परमात्मा पिता का हम बच्चों से यह वायदा है कि जब-जब धर्म की अति ग्लानि होंगी, सृष्टि पर पाप व अन्याय बढ़ जायेगा है… तब वे इस धरा पर अवतरित होंगे… अब हमने जाना है की वो एक साधारण मनुष्य तन का आधार लें, हमें सत्य ज्ञान सुनाकर, सद्गति का रास्ता दिखा, दु:खों से मुक्त कर रहे हैं। यह गायन वर्तमान समय का ही है, जबकि कलियुग के अन्त और नई सृष्टि सतयुग के संगम पर, स्वयं परमात्मा अपने वायदे अनुसार इस धरा पर अवतरित हो चुके हैं , तथा इस दु:खमय संसार (नर्क) को सुखमय संसार (स्वर्ग) में परिवर्तन करने का महान कार्य गुप्त रूप में करा रहे हैं। महाशिवरात्रि के साथ जुड़े हुए आध्यात्मिक महत्व को समझने का ये सबसे अच्छा अवसर है। शिव-लिंग परमात्मा शिव के ज्योति रूप को दर्शाता है। परमात्मा का कोई मनुष्य रूप नहीं है और ना ही उसके पास कोई शारीरिक आकार है। भगवान शिव एक सूक्ष्म, पवित्र व स्वदीप्तिमान दिव्य ज्योति पुंज हैं। इस ज्योति को एक अंडाकार रूप से दर्शाया गया है। इसीलिए उन्हें ज्योर्तिलिंग के रूप में दिखाया गया है, अर्थात “ज्योति का प्रतीक”। वो सत्य है, कल्याणकारी हैं और सबसे सुंदर आत्मा है, तभी उन्हें सत्यम-शिवम्-सुंदरम कहा जाता है। वो सत-चित-आनंद स्वरूप भी है।
वास्तव में जो परम ऐश्वर्यवान हो,जिसे लोग भजते हो
अर्थात जिसका स्मरण करते हो एक रचता के रूप में ,एक परमशक्ति के रूप में, एक परमपिता के रूप में, वही ईश्वर है और वही शिव है। एक मात्र वह शिव जो ब्रह्मा,विष्णु और शकंर के भी रचयिता है। शिव जीवन मरण से परे है। ज्योति बिन्दू स्वरूप है। वास्तव में शिव एक ऐसा शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से परमात्मा की सुखद अनुभूति होने लगती है। शिव को
कल्याणकारी तो सभी मानते है, साथ ही शिव ही सत्य है
शिव ही सुन्दर है, यह भी सभी स्वीकारते है। परन्तु यदि
मनुष्य को शिव का बोध हो जाए तो उसे जीवन मुक्ति का
लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।
गीता में कहा गया है कि जब जब धर्म के मार्ग से लोग विचलित हो जाते हैं, समाज में अनाचार, पापाचार, अत्याचार, शोषण, क्रोध, वैमनस्य, आलस्य, लोभ, अहंकार का मुक्ता, माया मोह बढ जाता है, तब तब ही परमात्मा को स्वयं आकर राह भटके लोगों को सन्मार्ग पर लाने की प्रेरणा का
कार्य करना पडता है। ऐसा हर पांच हजार साल में पुनरावृत
होता है। पहले सतयुग,फिर त्रेता,फिर द्वापर,फिर कलियुग और फिर संगम युग तक की यात्रा इन पांच हजार वर्षो में होती है। हालांकि सतयुग में हर कोई पवित्र, संस्कारवान, चिन्तामुक्त और सुखमय होता है।परन्तु जैसे जैसे सतयुग से त्रेता और त्रेता से द्वापर तथा द्वापर से कलियुग तक का कालचक्र घूमता है। वैसे वैसे
व्यक्ति रूप में मौजूद आत्मायें भी शान्त,पवित्र और सुखमय से अशान्त, दूषित और दुखमय हो जाती है। कलियुग को तो कहा ही गया है दुखों का काल। लेकिन जब कलियुग के अन्त में संगम युग से सतयुग के आगमन की घडी आती है तो यही वह समय जब परमात्मा स्वयं सतयुग की दुनिया बनाने के लिए आत्माओं
को पवित्र और पावनता का स्वयं ज्ञान देते है और आत्माओं को सतयुग के काबिल बनाते है।
समस्त देवी देवताओं में मात्र शिव ही ऐसे देव है जो देव के देव यानि महादेव है जिन्हे त्रिकालदर्शी भी
कहा जाता है। परमात्मा शिव ही निराकारी और ज्योति स्वरूप
है जिसे ज्योति बिन्दू रूप में स्वीकारा गया है। परमात्मा
सर्व आत्माओं से न्यारा और प्यारा है जो देह से परे है
जिसका जन्म मरण नही होता और जो परमधाम का वासी है
और जो समस्त संसार का पोषक है। दुनियाभर में
ज्योतिर्लिंग के रूप में परमात्मा शिव की पूजा अर्चना और
साधना की जाती है। शिवलिंग को ही ज्योतिर्लिंग के रूप
में परमात्मा का स्मृति स्वरूप माना गया है। संसार में सबसे
पहले सोमनाथ के मन्दिर में हीरे कोहिनूर से बने शिवलिंग की स्थापना की गई थी।विभिन्न धर्मो में परमात्मा को इसी आकार रूप में मान्यता दी गई। तभी तो
विश्व में न सिर्फ १२ ज्योर्तिलिंग परमात्मा के स्मृति स्वरूप
में प्रसिद्ध है बल्कि हर शिवालयों में शिवलिंग प्रतिष्ठित होकर परमात्मा का भावपूर्ण स्मरण करा रहे है। वही ज्योतिरूप में धार्मिक स्थलों पर ज्योति अर्थात दीपक
प्रज्जवलित कर परमात्मा के ज्योति स्वरूप की साधना की जाती है।
शिव परमात्मा ऐसी परम शक्ति है,जिनसे देवताओं ने
भी शक्ति प्राप्त की है। भारत के साथ साथ मिस्र, यूनान, थाईलैण्ड, जापान, अमेरिका, जर्मनी, जैसे दुनियाभर के अनेक देशों ने परमात्मा शिव के अस्तित्व
को स्वीकारा है। धार्मिक चित्रों में स्वयं श्रीराम,श्रीकृष्ण और शंकर भी भगवान शिव की आराधना
में ध्यान मग्न दिखाये गए है। जैसा कि पुराणों और
धार्मिक ग्रन्थों में भी उल्लेख मिलता है। श्री राम
ने जहां रामेश्वरम में शिव की पूजा की तो श्रीकृष्ण ने
महाभारत युद्ध से पूर्व शिव स्तुति की थी। इसी तरह शंकर
को भी भगवान शिव में ध्यान लगाते देखे जाने के चित्र
प्रदर्शित किये गए है। दरअसल शिव और शंकर दोनो अलग अलग है शिव परमपिता परमात्मा है तो ब्रह्मा,विष्णु और महेश
यानि शंकर उनके देव तभी तो भगवान शिव को देव का
देव महादेव अर्थात परमपिता परमात्मा स्वीकारा गया है।
ज्योति बिन्दू रूपी शिव ही अल्लाह अर्थात नूर ए इलाही
है।वही लाईट आफ गोड है और वही सतनाम है। यानि
नाम अलग अलग परन्तु पूरी कायनात का मालिक एक ही परम शक्ति है जो शिव है।
सिर्फ भारत के धार्मिक ग्रन्थों और पुराणों में ही शिव के रूप में परमात्मा का उल्लेख नही है बल्कि दुनियाभर के लोग और यहूदी,ईसाई,मुस्लमान भी
अपने अपने अंदाज में परमात्मा को ओम,अल्लाह,ओमेन के
रूप में स्वीकारते है। सृष्टि की रचना की प्रक्रिया का चिंतन
करे तो कहा जाता है कि सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर की
आत्मा पानी पर डोलती थी और आदिकाल में परमात्मा ने
ही आदम व हव्वा को बनाया जिनके द्वारा स्वर्ग की रचना की
गई। चाहे शिव पुराण हो या मनुस्मृति या फिर अन्य
धार्मिक ग्रन्थ हर एक में परमात्मा के वजूद को तेजस्वी रूप
माना गया है। जिज्ञासा होती है कि अगर परमात्मा है तो वह
कहां है ,क्या किसी ने परमात्मा से साक्षात किया है या फिर
किसी को परमात्मा की कोई अनूठी अनुभूति हुई है।
साथ ही यह भी सवाल उठता है कि आत्मायें शरीर धारण
करने से पहले कहा रहती है और शरीर छोडने पर कहा चली
जाती है।इन सवालों का जवाब भी सहज ही उपलब्ध है। सृष्टि
चक्र में तीन लोक होते है पहला स्थूल वतन,दूसरा सूक्ष्म
वतन और तीसरा मूल वतन अर्थात परमधाम। स्थूल वतन
जिसमें हम निवास करते है पंच तत्वों से मिलकर बना है।
जिसमें आकाश पृथ्वी,वायु,अग्नि और जल शामिल है।इसी
स्थूल वतन को कर्म क्षेत्र भी कहा गया है। जहां जीवन
मरण है और अपने अपने कर्म के अनुसार जीव फल भोगता
है। इसके बाद सूक्ष्म वतन सूर्य, चांद और तारों के पार है
जिसे ब्रह्मपुरी, विष्णुपुरी और शंकरपुरी भी कहा जाता है।
सूक्ष्म वतन के बाद मूल वतन है जिसे परमधाम कहा जाता है।
यही वह स्थान है जहां परमात्मा निवास करते है। यही वह
धाम है जहां सर्व आत्माओं का मूल धाम है। यानि
आत्माओं का आवागमन इसी धाम से स्थूल लोक के लिए
होता है।
आत्माओं का जन्म होता है और परमात्मा का
अवतरण होता है। यही आत्मा और परमात्मा में मुख्य अन्तर
है। सबसे बडा अन्तर यह भी हैे कि आत्मा देह धारण करती
है जबकि परमात्मा देह से परे है।परमात्मा निराकार है और
परमात्मा ज्योर्तिबिन्दू रूप में सम्पूर्ण आत्माओं को
प्रकाशमान करता है यानि उन्हे पतित से पावन बनाता है। पतित
से पावन बनाने के लिए ही परमात्मा शिव संगम युग में अवतरित होते है।
(लेखक आध्यात्मिक चिंतक है)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top