यह बात तो अब दुनिया भर में कही जाने लगी है कि जलवायु परिवर्तन कोई भविष्य में आने वाला संकट नहीं है। बल्कि इसे हम अपने वर्तमान में होता देख रहे हैं। न सिर्फ इसे होता देख रहे हैं, बल्कि इसके परिणामों को भी भुगत रहे हैं। यही वजह है कि विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) की हालिया रिपोर्ट ने दुनिया के जागरूक जन मानस का ध्यान खींचा है। इस रिपोर्ट के अनुसार इंसानों ने वातावरण को गर्मी रोकने वाली गैसों से इतना भर दिया है कि पृथ्वी की सेहत बिगड़ गई है। जंगलों को उजाडऩे और जीवाश्म ईंधन को जलाने की वजह से जलवायु पहले से ही ऐसी अनिश्चित स्थिति में जा चुकी है। ऐसी स्थिति मानव सभ्यता के इतिहास में पहले कभी नहीं देखी गई। ये बातें स्टेट ऑफ द क्लाइमेट रिपोर्ट-२०२१ में कही गई हैं। २०२१ में दुनिया में ग्रीनहाउस गैस की सघनता का रिकॉर्ड टूट गया। महासागरों में तापमान और अम्लीयता का स्तर काफी बढ़ गया।
आम तजुर्बा है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से तूफान और जंगल में लगने वाली आग की घटनाओं में काफी ज्यादा वृद्धि हुई है। ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों को अपना घर-बार छोड़कर दूसरी जगहों पर विस्थापित होना पड़ रहा है। अब यह कहना सिर्फ रस्म-अदायगी लगता है कि नुकसान बढ़ रहा है, इसलिए हमें बहुत कुछ करने की जरूरत है। कुछ करने की जरूरत है, वैज्ञानिक कम से कम तीन दशक से यह बता रहे है। लेकिन दुनिया की सरकारें, बड़ी कंपनियां और धनी-मानी तबके अपने स्वार्थ और सुविधाओं पर समझौता करने को तैयार नहीं हैं। २०१५ में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हुए पेरिस समझौते में दुनिया भर के देशों ने सदी के अंत तक धरती के तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से १.५ डिग्री सेल्सियस तक बनाए रखने की कोशिश करने पर सहमति जताई थी। लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उत्सर्जन में जितनी कटौती करनी होगी, इस दिशा में शायद ही किसी देश ने प्रभावी कदम उठाया है। आगे भी ऐसी उम्मीद नहीं जगती कि दुनिया अपने को बताने के लिए अब अधिक गंभीरता के साथ कदम उठाएगी।
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