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पुतिन का सपना: सत्य या कल्पना

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विदेश नीति संबंधी एक नए सिद्धांत की घोषणा की है। इसका मकसद ‘रूसी दुनिया’ की अवधारणा को साकार करना है। पुतिन ने ३१ पेज का एक दस्तावेज जारी किया है। उसे “मानवता नीति” कहा गया है। यूक्रेन पर हमले के छह महीनों बाद पुतिन ने ये नीति जारी की है। इसमें कहा गया है कि रूस अब “रूसी दुनिया” के विचारों और परंपराओं को आगे बढ़ाएगा। नीति-दस्तावेज कहता है कि विदेशों में बसे रूसियों के साथ संबंध ने रूस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे लोकतांत्रिक देश की छवि प्रदान की है, जो एक बहुपक्षीय दुनिया बनाने के लिए प्रयासरत है। गौरतलब है कि इसमें कहा गया है कि सोवियत संघ का विघटन एक त्रासदी थी। उस कारण रूसी मूल के ढाई करोड़ लोगों का रूस से बाहर चले जाना दुखद था। १९९१ में सोवियत संघ ११ देशों में बंट गया था। इसे पुतिन ने भोगौलिक तबाही कहा है। रूस की नई नीति कहती है कि देश के नेतृत्व को स्लाविक देशों, चीन और भारत के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए।
साथ ही पश्चिम एशिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के साथ अपने संबंध और मजबूत करने चाहिए। क्या ‘रूसी दुनिया’ नाम की इस अवधारणा के साथ पुतिन पूर्व सोवियत संघ को पुनर्स्थापित करना चाहते हैं, ये कयास अब दुनिया में लगाए जा रहे हैं। इस कयास का ठोस आधार है। कुछ वर्ष पहले पुतिन ने कहा था कि बीसवीं सदी की शुरुआत में रूस की आबादी १७ करोड़ थी, जबकि धरती की आबादी एक अरब थी। यानी ग्रह पर रहने वाला हर सातवां व्यक्ति रूसी साम्राज्य में रहता था। आज देश की आबादी १४ करोड़ है, जबकि धरती की आबादी छह अरब हो चुकी है। यानी हर ५०वां व्यक्ति रूसी है। तो क्या अब उस कमी को पूरा करने के लिए पूर्व सोवियत गणराज्यों को रूस से जोडऩे की कोशिश पुतिन करेंगे। ये आशंका बेबुनियाद नहीं है। इसीलिए पुतिन की नई नीति ने पश्चिम के कान खड़े कर दिए हैं।

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