नई दिल्ली , ०९ सितंबर । कांग्रेस महासचिव और सांसद जयराम रमेश ने कहा कि भारत अपनी बारी से अनुसार १८वें जी२० की अध्यक्षता कर रहा है। जी२० शिखर सम्मेलन की शुरुआत उस विषय पर विचार करने का भी समय है, जो एनडीए (नो डेट अवेलेबल) सरकार की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक को उजागर करता है। सरकार २०२१ में होने वाली दशकीय जनगणना कराने में विफल रही है। इंडोनेशिया, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे अन्य विकासशील देश सहित, लगभग हर दूसरे जी२० देश कोविड-१९ के बावजूद जनगणना कराने में कामयाब रहे हैं। जय राम रमेश ने कहा कि मोदी सरकार इतनी अयोग्य और अक्षम है कि वह १९५१ से तय समय पर होने वाली भारत की सबसे महत्वपूर्ण सांख्यिकीय प्रक्रिया को पूरा करने में असमर्थ रही है। यह हमारे देश के इतिहास में एक अभूतपूर्व विफलता है। एक रिपोर्ट के अनुसार जनगणना कराने में मोदी सरकार की विफलता के कारण १४ करोड़ भारतीयों को अनुमानित रूप से उनके भोजन के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। यह संविधान के अनुच्छेद २१ द्वारा नागरिक को गारंटीकृत उनके मौलिक अधिकार से वंचित करन है, जिसे यूपीए सरकार ने ऐतिहासिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के माध्यम से लागू किया था। जयराम रमेश ने कहा कि मोदी सरकार को पूरे भारत में परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा के रूप में एनएफएसए पर भरोसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा था, जिसने कोविड-१९ महामारी के दौरान सबसे गऱीब लोगों के लिए अतिआवश्यक सुरक्षा जाल प्रदान किया था। एनएफएसए के तहत, ६७% भारतीय भोजन के लिए राशन के हक़दार हैं। चूंकि मोदी सरकार २०२१ में जनगणना कराने में विफल रही, इसलिए यह २०११ की जनगणना के आधार पर केवल ८१ करोड़ लोगों को एनएफएसए कवरेज दे रही है। हालांकि, जनसंख्या के मौजूदा अनुमान के अनुसार, ९५ करोड़ भारतीय एनएफएसए कवरेज के हक़दार हैं। लेकिन नए लाभार्थियों को नहीं जोड़ा जा रहा है। कम से कम दो साल से लोगों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। जुलाई २०२२ में, सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर संज्ञान लिया था और मोदी सरकार को जनसंख्या अनुमानों का उपयोग करते हुए इस स्थिति को सुधारने का निर्देश दिया था। लेकिन कोई बदलाव नहीं किया गया। यह बड़ी विफलता न सिर्फ़ सर्वोच्च न्यायालय के प्रति प्रधान मंत्री की अवमानना को दर्शाती है, बल्कि इससे यह भी पता चलता है भारत के लोगों के संवैधानिक अधिकारों से उनका कोई लेना देना नहीं है।
मोदी सरकार न केवल जनगणना कराने में विफल रही है, बल्कि इसने २०११ में क्क्र सरकार द्वारा कराई गई सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना को भी दबा दिया है। इसने सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार के राज्य-स्तरीय जाति जनगणना के प्रयास का भी विरोध किया। जैसा कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान श्री राहुल गांधी ने हाइलाइट किया था और कांग्रेस अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खडग़े ने १६ अप्रैल, २०२३ को प्रधान मंत्री को लिखे एक पत्र में दोहराया, एक अपडेटेड और विश्वसनीय जाति जनगणना होना बेहद महत्वपूर्ण है। आबादी की गिनती, वर्गीकरण और ह्रक्चष्ट की बहुसंख्यक आबादी के स्पष्ट विवरण के बिना सभी भारतीयों के लिए पर्याप्त विकास और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना असंभव है। हम दान नहीं बल्कि समानता के सिद्धांत में दृढ़ता से विश्वास करते हैं, जिसके लिए जाति जनगणना आवश्यक है।
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