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हक्कानी बोले- तालिबान की जीत का जश्न न मनाए पाकिस्तान

वॉशिंगटन,17 सितंबर। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अगर कोई सबसे ज्यादा खुश है तो वो पाकिस्तान है। राजधानी इस्लामाबाद में तक तालिबानी झंडे लहरा रहे हैं। जश्न के जुलूस और रैलियां निकाली गईं। इमरान खान सरकार तालिबानी हुकूमत को दुनिया से मान्यता दिलाने के लिए पूरा दम लगा रही है। अब पाकिस्तान के पूर्व डिप्लोमैट हुसैन हक्कानी ने पाकिस्तान सरकार, फौज और आईएसआई को सीधी चेतावनी दी है। हक्कानी के मुताबिक, पाकिस्तान में तालिबान की जीत का जश्न बहुत जल्द उसे महंगा पड़ने वाला है। हक्कानी के मुताबिक- दुनिया सब देख रही है और इस जश्न का खामियाजा कई स्तरों पर पाकिस्तान को उठाना पड़ेगा। एक इंटरव्यू में हक्कानी ने साफ कहा- पाकिस्तानी हुक्मरान और जिम्मेदार जितना आसान मसला समझ रहे हैं, ये उतना आसान नहीं है। इमरान खान कहते हैं- तालिबान ने गुलामी की जंजीरें तोड़ दीं। फॉरेन मिनिस्टर कुरैशी और एनएसए मोईद यूसुफ दुनिया से तालिबान हुकूमत को मान्यता और मदद दिलाने के लिए पूरा दम लगा रहे हैं। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान और तालिबान एक हैं। 20 साल तक पाकिस्तान ने चोरी-छिपे तालिबान की मदद की है। अब अपनी हरकतों से उसने खुद इसके सबूत दुनिया के सामने ला दिए हैं। हुसैन कहते हैं- अफगान तालिबान और पाकिस्तान तालिबान (टीटीपी) में कोई फर्क नहीं है। दोनों एक हैं। दोनों में पश्तून हैं। टीटीपी ने पिछले हफ्ते पाकिस्तान में दो फिदायीन हमले किए। अफगानिस्तान में तालिबान की जीत के बाद पाकिस्तान तालिबान के हौसले बुलंद हैं और उसको वहां काफी समर्थन मिलता है। टीटीपी अब पाकिस्तान में वही करेगा जो अफगान तालिबान ने अपने मुल्क में किया है और अफगान तालिबान उसे रोक नहीं पाएंगे। अफगान तालिबान बड़ा भाई और पाकिस्तान तालिबान छोटा भाई है। एक जीत चुका है तो दूसरा बिल्कुल चुप नहीं बैठेगा और उसके नेता अमेरिकी मीडिया में इसका ऐलान कर रहे हैं। अफगान तालिबान और टीटीपी दोनों ही डूरंड लाइन को नहीं मानते। क्या पाकिस्तान सरकार, फौज और आईएसआई इन दोनों से टक्कर ले पाएगी? पाकिस्तान ने वहां फेंसिंग लगाकर गुस्से को और भड़का दिया है। वो तो पश्तून होमलैंड मांग रहे हैं, तो चुप कैसे बैठेंगे? अगर अफगान तालिबान को पाकिस्तान की इतनी ही फिक्र होती तो क्या वो अपनी जेलों से हजारों टीटीपी के लोगों को छोड़ते? अब ये खूंखार आतंकी पाकिस्तान को निशाना बनाएंगे। असर दिखने लगा है। हर दिन ब्लास्ट या फायरिंग। अफगान तालिबान चाहता है कि दुनिया उसकी हुकूमत को मान्यता दे। भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र से वो इसकी गुहार लगा रहे हैं, बातचीत कर रहे हैं। पाकिस्तान की फिक्र किसे है? बड़े देश मान्यता और मदद देंगे तो तालिबानी हुकूमत वैसे ही मुश्किलों से उबर जाएगी। पाकिस्तान जंग में तो धोखे से उनकी मदद कर सकता है, लेकिन हुकूमत चलाने में नहीं। उनके पास देने के लिए है ही क्या? हक्कानी कहते हैं- अगर तालिबान हुकूमत पर प्रतिबंध लगे तो पाकिस्तान पर इसका सीधा असर होगा। वहां तालिबान का साथ देने वालों की बहुत बड़ी तादाद है। अफगान रिफ्यूजियों को वो सरहद पर रोक ही नहीं सकता। उसके फेंसिंग लगाने से कुछ नहीं होगा, क्योंकि डूरंड लाइन को तो तालिबान मानते ही नहीं हैं। तालिबान का साथ देकर पाकिस्तान दुनिया का भरोसा पहले ही खो चुका है। ये साफ हो चुका है कि वहां की हुकूमत और फौज आतंकवाद का समर्थन करते हैं। हक्कानी के मुताबिक- पाकिस्तान दुनिया को सबसे पहले ये बताए कि अगर उसे तालिबानी हुकूमत को मान्यता दिलाने की इतनी ही फिक्र है तो उसने खुद अब तक ये काम क्यों नहीं किया। वो अफगान तालिबान की हुकूमत को मान्यता क्यों नहीं देता? अब अफगानिस्तान में जो कुछ होगा, उसका सीधा असर पाकिस्तान पर पड़ेगा। न अफगानिस्तान की तरफ से राहत मिलेगी और न ही दुनिया की तरफ से।

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