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बांग्लादेश के पहले हिंदू चीफ जस्टिस को 11 साल की जेल

ढाका ,11 नवंबर । बांग्लादेश की एक अदालत ने धनशोधन एवं विश्वास भंग से संबद्ध एक मामले में पूर्व और पहले हिंदू चीफ जस्टिस सुरेंद्र कुमार सिन्हा को उनकी अनुपस्थिति में 11 साल की कारावास की सजा सुनाई। सिन्हा देश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से पहले प्रधान न्यायाधीश बने थे। ढाका के विशेष न्यायाधीश चतुर्थ शेख नजमुल आलम ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश को मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में सात साल तथा आपराधिक विश्वास भंग के अपराध में चार साल की कारावास की सजा सुनाई। दोनों सजाएं साथ साथ चलेंगी। 70 वर्षीय सिन्हा अभी अमेरिका में रह रहे हैं। अदालत ने अपने फैसले में कहा, (न्यायमूर्ति) सिन्हा धनशोधित राशि के प्रधान लाभार्थी हैं। सिन्हा को फार्मर्स बैंक ,जिसे अब पद्म बैंक कहा जाता है, से कर्ज के तौर पर लिए गए 4,70,000 अमेरिकी डॉलर के धनशोधन में 11 साल की कैद की सजा सुनाई गई। चार साल पहले सिन्हा ने विदेश यात्रा के दौरान अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। सरकार ने उन पर भ्रष्टाचार में शामिल रहने का आरोप लगाया था।
सिन्हा जनवरी 2015 से नवंबर 2017 तक देश के 21वें प्रधान न्यायाधीश थे। उन्होंने आरोप लगाया है कि उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया क्योंकि उन्होंने बांग्लादेश के वर्तमान अलोकतांत्रिक एवं निरंकुश शासन का विरोध किया। इस मामले में दस अन्य में से मोहम्मद शाहजहां और निरंजन चंद्र साहा को बरी कर दिया गया क्योंकि उनके विरुद्ध आरोप साबित नहीं किए जा सके।
मामले के बयान के अनुसार अन्य आरोपियों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर 470000 डॉलर का ऋण लिया एवं उसे पे-आर्डर के जरिए सिन्हा के निजी खाते में डाल दिया। पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने नकद, चेक और पे-आर्डर के जरिए यह राशि दूसरे खाते में अंतरित कर दी। यह कृत्य भ्रष्टचार रोकथाम अधिनियम और धनशोधन रोकथाम अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है।
अपनी आत्मकथा ए ब्रोकेन ड्रीम, रूल ऑफ लॉ , ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रेसी में सिन्हा ने कहा कि 2017 में धौंस एवं धमकी के जरिए उन्हें इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया गया। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कुछ गैर सरकारी अखबारों पर उनका समर्थन करने का आरोप लगाया था। पुस्तक के विमोचन के बाद सिन्हा ने भारत से बांग्लादेश में कानून के शासन एवं लोकतंत्र का समर्थन करने की अपील की थी।

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