92 Views

जलवायु परिवर्तन का पूर्वानुमान केरल की बारिश से खाया मेल

पेरिस। भयानक बारिश के बाद बाढ़ ने केरल को डुबोने के साथ 13 लाख लोगों को विस्थापित कर दिया। केरल की यह बारिश वैज्ञानिकों के जलवायु परिवर्तन के पूर्वानुमान से बिल्कुल मेल खा रही है। वैज्ञानिक अब चेता रहे हैं कि अगर ग्लोबल वॉर्मिंग ऐसे ही जारी रही तो अभी और भयंकर नतीजे देखने को मिल सकते हैं। इस दक्षिणी राज्य के किसान अपनी जीविका के लिए मॉनसून की बारिश पर निर्भर रहते हैं। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक इस बार बादलों ने सामान्य से ढाई गुना अधिक पानी धरती पर गिरा दिया। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के मौसम वैज्ञानिक रॉक्सी का कहना है कि केरल बाढ़ जैसी किसी एक मौसमी घटना को मौसम परिवर्तन से जोड़ना कठिन है। साथ ही साथ उन्होंने एएफपी को यह भी बताया, ‘हमारी हालिया रिसर्च बताती है कि 1950 से 2017 के बीच बाढ़ की वजह बनने वाली बहुत ज्यादा बारिश होने की घटनाओं में तीन गुनी वृद्धि हुई है।’ पिछले साल नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक मॉनसून बारिश और बाढ़ की वजह से पिछले साल देशभर में 69000 लोगों की मौत हुई।

इसके अलावा एक करोड़ 70 लाख लोग विस्थापित हुए। वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू इस स्टडी के सह लेखक थे। आपको बता दें कि केरल के सभी 35 जलाशय 10 अगस्त तक बारिश से लबालब भर गए। इस वजह से प्रशासन को 26 साल में पहली बार इडुक्की डैम के जलद्वार खोलने पड़े। जर्मनी के पोस्टडैम इंस्टिट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च की वैज्ञानिक किरा विंके का कहना है कि हम अभी केरल में जो बाढ़ देख रहे हैं वह मौसम में परिवर्तन के अनुमानों के मुताबिक ही है। उन्होंने एएफपी को बताया कि इस स्तर का कार्बन उत्सर्जन यूं ही जारी रहा, जिसकी की पूरी आशंका है, तो हमारे पास सामने ऐसा खतरा होगा जिसे संभाला नहीं जा सकेगा। रॉक्सी मैथ्यू इसकी व्याख्या करते हुए बताते हैं कि अरब सागर के तेजी से गर्म होने और पास के लैंडमास की वजह मॉनसूनी हवाओं में यह परिवर्तन हो रहा है। वे तीन से चार दिनों की छोटी अवधि के लिए काफी तीव्र हो जा रहीं हैं। रशियन अकैडमी ऑफ साइंस की प्रफेसर और मॉनसून एक्सपर्ट एलेना कहती हैं कि पिछले एक दशक में क्लाइमेट चेंज की वजह से लैंडमास ज्यादा गर्म हुआ है। इसका असर केंद्रीय और दक्षिणी भारत में अधिक मॉनसूनी बारिश के रूप में देखने को मिला है। औद्योगीकरण से पहले की तुलना में धरती के तापमान में महज एक डिग्री सेल्सियस के परिवर्तन पर ही ये बदलाव देखने को मिल रहे हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top