नई दिल्ली। सीबीआई द्वारा सुप्रीम कोर्ट में बोफोर्स घोटाले की जांच फिर से शुरू किए जाने की मांग को शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सीबीआई 13 साल की देरी से अदालत क्यों आई? बता दें कि सीबीआई ने इस साल के शुरू में शीर्ष अदालत में एक याचिका दाखिल कर इस मामले की फिर से सुनवाई की इजाजत मांगी थी। शीर्ष अदालत के इस फैसले के बाद माना जा रहा है कि बोफोर्स का जिन्न अब पूरी तरह दफन हो गया है। हालांकि बीजेपी नेता अजय अग्रवाल द्वारा 2005 में इसी मामले पर दाखिल याचिका पर अभी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी बाकी है। पर अग्रवाल की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्षकार होने पर ही सवाल उठाया था।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ ने 64 करोड़ रुपये के रिश्वतकांड जांच की सुनवाई करते हुए सीबीआई से कई तीखे सवाल पूछे। पीठ ने कहा कि वह सीबीआई की इस केस में हिंदुजा ब्रदर्स को बरी करने के हाई कोर्ट के फैसले पर अपील करने में देरी की दलील से सहमत नहीं है। गौरतलब है कि दिल्ली हाई कोर्ट ने 13 साल पहले इस मामले में सभी आरोपियों पर लगे आरोपों को खारिज कर दिया था। सीबीआई ने दिल्ली हाई कोर्ट के 31 मई 2005 के फैसले के खिलाफ इस साल फरवरी में एक याचिका दाखिल की थी।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि जांच ब्यूरो पहले से ही लंबित अधिवक्ता अजय अग्रवाल की अपील पर सुनवाई के दौरान ये सारे बिंदु उठा सकता है। अग्रवाल ने भी हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दे रखी है। शीर्ष अदालत पहले ही अजय अग्रवाल की अपील विचारार्थ स्वीकार कर चुकी है। अजय अग्रवाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। गौरतलब है कि बोफोर्स तोप सौदे के चलते 1980 के दशक में देश की राजनीति में भूचाल सा आ गया था। 1989 में कांग्रेस को इसकी वजह से सत्ता तक गंवानी पड़ी थी। मामले में आरोपी इटली के बिजनसमैन ओत्तावियो क्वात्रोकी की गांधी परिवार से कथित नजदीकी सवालों के घेरे में रही है।
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