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किसान क्रांति यात्रा: जमीनी नेताओं की अनदेखी से बिगड़े हालात!

मेरठ भारतीय किसान क्रांति यात्रा को लेकर दिल्ली और यूपी बॉर्डर पर किसानऔर जवान के बीच महाभारत सरकारी रणनीतिकारों की कमजोर रणनीति की वजह से हुआ। हालात बिगड़ने को लेकर अंदर की जो बात सामने आ रही है, उसके मुताबिक वेस्ट यूपी के जमीनी नेताओं की सरकार की तरफ से की गई अनदेखी इस महाभारत की बड़ी वजह रही। यात्रा की अगुवाई कर रहे टिकैत बंधुओं तक बेहतर पहुंच रखने वाले उनके सजातीय बीजेपी नेताओं को पूरे घटनाक्रम से ही दूर रखा गया। बीजेपी के दूसरे और दूर के नेताओं को आगे कर समझौता वार्ता करने पर सरकार का जोर रहा। एक-दूसरे पर विश्वास की कमी और संवादहीनता ने हालात को बेकाबू बना दिया। खुफिया विभाग की रिपोर्ट पर ध्यान नहीं देना और नैशनल हाइवे के बंद होने के बाद भी सक्रियता दिखाने में देरी ने हालात बिगाड़ने में आग में घी का काम काम किया।

सरकार और भारतीय किसान यूनियन से जुड़े भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक किसान क्रांति यात्रा में आठ दिन तक हजारों किसान शामिल रहे। दिल्ली को जोड़ने वाला नैशनल हाइवे आठ दिन वनवे रहा। सड़क पर किसान सोए, खाना बनाया, मीडिया में आंदोलन आता रहा, खुफिया विभाग हजारों किसानों के दिल्ली में घुसने की रिपोर्ट देता रहा लेकिन लेकिन केंद्र या प्रदेश सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया। जिला स्तर पर नौकरशाह अपने स्तर से निर्णय लेकर यात्रा को आगे बढ़ाते रहे। नौवें दिन एनसीआर के गाजियाबाद में यात्रा के दाखिल होते ही दिल्ली और यूपी सरकार सक्रिय हुई। सीएम योगी गाजियाबाद पहुंचे, किसानों से वार्ता की, लेकिन ज्यादातर मांगे केंद्र सरकार से संबंधित बताकर किसानों ने समझौता करने से हाथ खींच लिए। सरकार और बीजेपी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, योगी से मुलाकात के बाद केंद्र सरकार को किसानों के इरादों की जानकारी दी गई। किसानों से आगे की बात केंद्र स्तर पर करने का सुझाव दिया गया, लेकिन किसानों को मनाने के लिए पहले से अपनाई जाने वाली रणनीति लागू नहीं की गई। दरअसल, अक्सर किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के किसान आंदोलनों की गांठ सुलझाने के लिए क्षेत्रीय और सजातीय असरदार नेताओं का सहारा लिया जाता था। सूत्रों के मुताबिक, इस बार बीजेपी में गुटबंदी हावी रही। श्रेय लेने की होड़ में बीजपी नेताओं में गुटबाजी हो गई।

किसान आंदोलन में हालांकि सभी वर्ग के लोग शामिल थे लेकिन अगुवाई टिकैत बंधु (जाट) नरेश टिकैत और राकेश टिकैत कर रहे थे। किसान आंदोलन के जानकारों का मानना है कि वेस्ट यूपी के बीजेपी के जाट नेताओं और टिकैत परिवार के नजदीकी नेताओं का सरकार ने साथ नहीं लेना, गलत कदम साबित हुआ। उनके मुताबिक पूर्व केंद्रीय मंत्री और मुजफ्फरनगर के सांसद संजीव बालियान, शामली के बीजेपी विधायक उमेश मलिक, वेस्ट यूपी में कई साल बीजेपी का संगठन चलाने वाले यूपी के मंत्री भूपेंद्र सिंह को पूरी तहत किनारे रखा गया। इस मामले में बागपत के सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह का भी सहयोग नहीं लिया गया। इसके उलट जिस गन्ने की मांग को लेकर किसान ज्यादा गुस्से में हैं, उस विभाग के मंत्री सुरेश राणा को मुख्य अगवा बनाया जाना किसानों को नागवार गुजरा। किसानों का कहना था कि अभी तक उनकी समस्या का समाधान नहीं करने वाले मंत्री की बातों पर अब कैसे भरोसा करें। यही वजह रही कि बार्डर पर किसानों के गुस्से का शिकार सुरेश राणा को होना पड़ा। उनके साथ दूसरे मंत्री लक्ष्मीनारायण सिंह को आगे किया जाना भी कारगर साबित नहीं हुआ।

बीजेपी के भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक यूपी से सटे प्रदेश के निवासी टिकैत बंधुओं का सजातीय और केंद्र में मंत्री को समझौता वार्ता में केंद्र सरकार की तरफ से एक अक्तूबर को लगाया गया। एक अक्तबूर की आधी रात इस केंद्रीय मंत्री के घर पर बैठक रात दो बजे तक चली। जिसमें 12 किसान, टिकैत बंधुओं के सजातीय केंद्रीय मंत्री, एक केंद्रीय राज्य मंत्री, यूपी के दो मंत्री और संगठन के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी शामिल हुए। काफी हद तक समझौते पर सहमति भी बन गई। बताते हैं कि तय भी हुआ कि केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह और केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री शेखावत किसानों के बीच जाकर समझौते के तहत दो अक्तूबर को ऐलान करेंगे। भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक, दो अक्तूबर की सुबह केंद्र सरकार के उच्च स्तर से यह कहकर ऐलान को रोकने को निर्देश मिले कि किसानों की वित्तीय संबंधी मांगों को पूरा करने से पहले एक कमिटी बनाई जाए, उसकी रिपोर्ट के बाद ही मांग मानने का बात कही जाए। उसके बाद दो अक्तूबर की सुबह जिस केंद्रीय मंत्री के यहां रात में हुई बैठक में सबकुछ तय किया गया था, उस मंत्री को पूरे सीन से अलग कर दिया गया। मामला हाथ से निकलता देख केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के किसानों से वार्ता की जिम्मा सौंपा गया।

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