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उर्जित पटेल भी बने केंद्र के गले की फांस! जानिए पूरा माजरा

नई दिल्ली। केंद्र सरकार तथा भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के बीच जारी मतभेद अब चरम पर पहुंच गया है। इस साल की शुरुआत में विभिन्न मुद्दों पर शुरू हुए मतभेदों के परिणामस्वरूप केंद्र तथा केंद्रीय बैंक के बीच संपर्क लगभग समाप्त हो गया है। आरबीआई के डेप्युटी गवर्नर विरल आचार्य द्वारा शुक्रवार को अपने बयान में केंद्रीय बैंक के कामकाज में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप तथा उसकी स्वायत्तता के खतरे की ओर इशारे ने आग में घी डालने का काम किया। बात यहां तक पहुंच चुकी है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के ही कुछ लोग कहने लगे हैं, ‘इनसे तो रघुराम राजन ही बेहतर थे।’
शीर्ष वित्तीय संस्थान तथा केंद्र सरकार के बीच तनाव से आने वाले समय में गवर्नर उर्जित पटेल को सेवा विस्तार मिलने पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। अगले साल सितंबर में उनका तीन सालों का कार्यकाल समाप्त होने वाला है और ऐसी स्थिति में उन्हें सेवा विस्तार मिलना मुश्किल लग रहा है। पटेल ने हालांकि मुद्दे पर टाइम्स ऑफ इंडिया के मेसेज का कोई जवाब नहीं दिया। राजग सरकार में शामिल एक शीर्ष नेता ने कुछ महीने पहले टीओआई को बताया, ‘रघुराम राजन के बाद पटेल को भी बाय-बाय कहना अच्छा नहीं लगेगा।’ वहीं, पटेल की बातों से इत्तेफाक रखने वाले लोगों का कहना है कि आरबीआई गवर्नर को यह अच्छी तरह पता है कि उन्हें सेवा विस्तार मिलने वाला नहीं, इसलिए उन्हें भी केंद्र की कोई परवाह नहीं है। साल 2018 में ही कम से कम दर्जनभर मुद्दों पर दोनों का विपरीत स्टैंड रहा। सरकार की नाराजगी की शुरुआत तब हुई, जब आरबीआई ने न सिर्फ मुख्य ब्याज दरों में कटौती करने से इनकार कर दिया, बल्कि उसे और बढ़ा दिया। इसके बाद 12 फरवरी को आरबीआई ने नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) और लोन रीस्ट्रक्चरिंग के नए नियम को लेकर सर्कुलर जारी किया। केंद्रीय बैंक के इस कदम से सरकार आग बबूला हो गई।
इसके तुरंत बाद नीरव मोदी घोटाला सामने आ गया, जिसने आग में घी डालने का काम किया। केंद्र सरकार इस बात को लेकर आरबीआई पर बिफर पड़ी कि उसने इसकी ढंग से निगरानी नहीं की। इसके बाद पटेल ने भी बगावती तेवर अख्तियार करते हुए केंद्र से बैंकों पर नियंत्रण के लिए और अधिक शक्तियां प्रदान करने की मांग की। आईएलएंडएफएस समूह की कंपनियों के डिफॉल्ट होने के बाद एनबीएफसी क्षेत्र में नकदी की भारी किल्लत दूर करने के लिए सरकार आरबीआई पर लगातार दबाव बना रही है, लेकिन इस मामले में कोई भी कदम उठाने से केंद्रीय बैंक ने इनकार कर दिया है। आरबीआई के बोर्ड से नचिकेत मोर को कार्यकाल पूरा होने से दो साल से अधिक समय पहले ही बिना सूचना दिए उन्हें हटाए जाने से केंद्रीय बैंक नाराजगी और बढ़ गई। दरअसल, नचिकेत मोर ने केंद्रीय बैंक से सरकार द्वारा अधिक लाभांश मांगे जाने का विरोध किया था और माना जाता है कि इसी विरोध के कारण बोर्ड से उनकी विदाई की गई। बहरहाल, सरकार के लोगों का कहना है कि इस तनाव को सरकार बनाम केंद्रीय बैंक के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। उनका कहना है कि गवर्नर को बोर्ड के साथ-साथ सबको साथ लेकर चलना होगा। उन्होंने इस बात से इनकार किया कि सरकार आरबीआई के कामकाज में हस्तक्षेप कर रही है, लेकिन इस बात पर भी जोर दिया कि संस्थान की स्वायत्तता का इस्तेमाल उच्च विकास दर हासिल करने के लिए करना चाहिए।

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