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अटलजी को याद कर भावुक हुए आडवाणी, संघ प्रमुख ने बताया आदर्श

नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में सोमवार को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने के लिए सर्वदलीय शोक सभा का आयोजन हुआ। श्रद्धांजलि सभा में बोलते हुए पूर्व उपप्रधानमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भावुक हो गए। उन्होंने भारी मन से अटलजी के साथ अपनी 65 साल पुरानी दोस्ती को याद करते हुए कहा कि उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि उन्हें ऐसी किसी सभा को संबोधित करना पड़ेगा। श्रद्धांजलि सभा में आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी अटलजी को याद किया और उनके बताए रास्तों पर चलने का संकल्प लिया। सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद समेत तमाम हस्तियों ने अटलजी को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

अटलजी की श्रद्धांजलि सभा में उनके अजीज दोस्त लालकृष्ण आडवाणी भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि जब मेरी आत्मकथा का विमोचन हुआ तो अटलजी उपस्थित नहीं हो पाए थे, जिसका उन्हें बहुत कष्ट हुआ और आज जब वह नहीं हैं तो कितना कष्ट हो रहा है, यह समझा जा सकता है। आडवाणी ने कहा, ‘जीवन में अनेक सभाओं को संबोधित किया लेकिन आज जैसी यह सभा मैं कभी संबोधित करूंगा, इसकी कभी मेरे मन में कल्पना नहीं थी। मैं जब आज जैसी सभा कह रहा हूं तो मुझे इसका पहला-पहला लक्षण यही नजर आता है कि ऐसी सभा जिसमें अटलजी उपस्थित न हों, ऐसी सभा को संबोधित करना पड़ेगा।नवह कभी-कभी कहते थे कि मैं कितने दिन रहूंगा। जब वह ऐसी बातें करते थे तो मन में तकलीफ होती थी।’

आडवाणी ने आगे कहा, ‘मैंने जब पुस्तक लिखी थी, अपने जीवन की आत्मकथा की, उसमें अटलजी का उल्लेख था लेकिन जब विमोचन हुआ और अटलजी नहीं आए तो मुझे बहुत तकलीफ हुई। पुस्तक का प्रकाशन भी हुआ लेकिन जब विमोचन हुआ तो अटलजी उपस्थित नहीं थे। मेरे मन में कष्ट हुआ था। आज स्वयं अटलजी उपस्थित नहीं हैं और ऐसी सभा हो रही है जिसमें सिर्फ अटलजी को चाहने वाले कार्यकर्ता नहीं हैं बल्कि विभिन्न पार्टियों के नेता यहां उपस्थित हैं जिनका जनसंघ, बीजेपी या संघ से रिश्ता नहीं है। इसकी मुझे बहुत खुशी है।’ अटलजी के साथ अपनी साढ़े 6 दशकों लंबी दोस्ती का जिक्र करते हुए आडवाणी ने कहा, ‘मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मेरी अटलजी से मित्रता 65 साल की थी। मैंने अटलजी के साथ मिलकर बहुत सारे अनुभव किए, साथ-साथ काम किए, पुस्तकें पढ़ते थे। कोई अगर अटलजी के परिचय का कोई साक्षात्कार उनके जीवन परिचय से करेगा तो यह भी जानेगा कि अटलजी की विशेषताओं में एक यह थी कि भोजन अच्छा बना सकते थे। अटलजी ही भोजन पकाकर खिलाते थे।’

आडवाणी ने कहा, ‘हमने अटलजी से बहुत कुछ सीखा, बहुत कुछ पाया अटलजी से और इसीलिए दुख होता है कि वह हमको छोड़करके हमसे अलग हो गए। लेकिन इतना ही कह सकता हूं कि अटलजी ने जो कुछ भी हमको सिखाया, दिया उसे ग्रहण करके हम जीवन बिताएं। जो संस्कार हमें आरएसएस से मिला, उन संस्कारों को कार्यान्वित करके हमें संतोष होगा। मेरी विनम्र श्रद्धांजलि अटलजी को और उनके बताए मार्ग पर मैं जीवनभर चल सकूं, यह शक्ति हमें भगवान दें।’

अटलजी को श्रद्धांजलि देते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि उन्होंने जड़ों को सींचसींचकर एक विशाल वृक्ष तैयार किया। संघ प्रमुख ने कहा, ‘कल एक पुस्तक हाथ लगी उसमें एक सुभाषित हाथ लगी जिसमें लिखा था कि सुंदर पुष्पों और मधुर फलों से एक बड़ा वृक्ष सुसज्जित है, उसके पत्ते भी औषधि है, औषधि के लिए लोग पत्ते ले जाते हैं, सुगंध के लिए फूलों को ले जाते हैं, स्वादिष्ट फलों को ले जाते हैं…कितने लोगों के मन में यह विचार आता है कि अभी यह वृक्ष छाया समेत तमाम चीजें दे रहा है, वह कभी छोटा पौधा था तो उसकी रक्षा करते हुए उसकी जड़ों को किसने सींचा होगा। अटलजी ने भी ऐसा ही वृक्ष तैयार किया।…उसकी जड़ों को सींचने वाले कुछ लोग चले गए कुछ आजभी मौजूद हैं। ऐसे पौधे को सींचकर वृक्ष बनाने में अटलजी की बड़ी भूमिका रही।’

भागवत ने कहा, ‘मेरा अटलजी से बहुत ज्यादा संपर्क नहीं रहा। कॉलेज में पढ़ता था तब अटलजी आए थे और उन्हें पहली बार देखा था। उनका भाषण सुनने के लिए जाया करते थे। पीएम आवास पर जाकर उनकी चर्चा को सुनने का सौभाग्य मिला।’ भागवत ने कहा कि अटलजी सबके प्रति मित्रता का भाव रखते थे। सार्वजनिक जीवन की ऊंचाई पर पहुंचकर भी वह जमीन से जुड़े रहे। संघ प्रमुख ने कहा कि अटलजी ने अपने जीवन से हम सबके सामने आदर्श प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि आज अटलजी नहीं हैं लेकिन वह हमारे ईर्द-गिर्द ही हैं और रहेंगे। कविताओं, भाषणों, जीवन के किस्सों के रूप में हमेशा मौजूद रहेंगे। पहले भी थे, आज भी हैं और सदा रहेंगे।

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