नई दिल्ली, 10 सितंबर। भारत में म्यूचुअल फंड्स में निवेश का चलन तेजी से बढ़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में म्यूचुअल फंड्स की मल्टी-कैप फंड कैटेगरी ने अच्छा प्रदर्शन किया है। बीते 1 साल में इस कैटेगरी ने 86% तक का रिटर्न दिया है।
मल्टी-कैप फंड के तहत लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप में निवेश किया जाता है। उपरोक्त तीनों कैटेगरी के अपने-अपने अवसर और जोखिम होते हैं, जिनको मल्टी-कैप अपने हिसाब से समावेश करता है। सेबी के नियमों के मुताबिक बाजार पूंजीकरण के लिहाज से शीर्ष 100 कंपनियां लार्ज कैप होती हैं जबकि उसके बाद मिड कैप और स्मॉल कैप कंपनियां होती हैं। मल्टी-कैप फंड में 75 प्रतिशत निवेश इक्विटी में होता है। निवेश
सेबी के नए नियमों के अनुसार मल्टी-कैप फंड में लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप तीनों में 25-25 प्रतिशत हिस्सा रखना होगा। फंड मैनेजर को न्यूनतम 75 प्रतिशत इक्विटी और इक्विटी ओरिएंटेड फंड में निवेश रखना होगा। मान लीजिए फंड मैनेजर के पास निवेशकों के कुल 100 रुपए हैं। यहां फंड मैनेजर को न्यूनतम 75 रुपए इक्विटी और इक्विटी ओरिएंटेड फंड में निवेश करना होगा। जिसमें 25-25 रुपए लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप तीनों में लगाना होगा। बाकि बचे हुए 25 रुपए फंड मैनेजर अपने हिसाब से निवेश कर सकते हैं। पर्सनल फाइनेंस एक्सपर्ट और ऑप्टिमा मनी मैनेजर्स के संस्थापक व सीईओ पंकज मठपाल कहते हैं कि यदि आप इक्विटी फंड्स में इन्वेस्ट करना चाहते हैं, लेकिन ज्यादा रिस्क नहीं लेना चाहते, तो आप टॉप रेटेड मल्टी-कैप फंड्स में इन्वेस्ट कर सकते हैं। जो निवेशक एक ही पोर्टफोलियो में जोखिम और अस्थिरता के बीच संतुलन बनाना चाहते हैं, वे भी इसमें पैसा लगा सकते हैं। 12 महीने से कम समय में निवेश भुनाने पर इक्विटी फंड्स से कमाई पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) टैक्स लगता है। यह मौजूदा नियमों के हिसाब से कमाई पर 15% तक लगाया जाता है। अगर आपका निवेश 12 महीनों से ज्यादा के लिए है तो इसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) माना जाएगा और इस पर 10% ब्याज देना होगा। रूंगटा सिक्योरिटीज के पर्सनल फाइनेंस एक्सपर्ट हर्षवर्धन रूंगटा कहते हैं कि म्यूचुअल फंड में एक साथ पैसा लगाने की बजाए सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी एसआईपी द्वारा निवेश करना चाहिए। एसआईपी के जरिए आप हर महीने एक निश्चित अमाउंट इसमें लगाते हैं। इससे रिस्क और कम हो जाता है, क्योंकि इस पर बाजार के उतार-चढ़ाव का ज्यादा असर नहीं पड़ता। पंकज मठपाल कहते हैं कि इन स्कीमों में कम से कम 5 साल के टाइम पीरियड को ध्यान में रखकर निवेश करना चाहिए। हो सकता है कम अवधि में कैटेगरी का प्रदर्शन अच्छा न हो, लेकिन लंबी अवधि में ये आपको बेहतर रिटर्न दे सकते हैं।
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